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हरीतक्यादिनिघंटे:
मन्थनी नूतना धार्या कटुतैलेन लेपिता । निर्मलेनाम्बुनापूर्य तस्यां चूर्णं विनिः क्षिपेत् ॥ ५४ ॥ राजिकां जीरलवणहिङशुण्ठीनिशाकृतम् । निःक्षिपेटकांस्तत्र भाण्डस्यास्यं च मुद्रयेत् ॥ ५५ ॥ ततो दिनतयादूर्ध्वमम्लाः स्युर्वटका ध्रुवम् । काञ्जिको वटको रुच्यो वातघ्नः श्लेष्मकारकः ॥ ५६ ॥ शीतदाहशूलाजीर्ण हरते दृयुजापहः ।
टीका - पूर्वोक्त धूमसीसें हींग हलदी लवणको मिलाकै बनाया हुवा ॥ ४२ ॥ और जीरा सज्जी इनकों मिलाकै बारीक करके वेलाहुवा पापड है वे पापड अङ्गारेसें भूने हुए परम रोचक ॥ ४३ ॥ दीपन पाचन रूखे कुछ भारी कहें हैं और मूंhi उसीके समान गुणमें कहे हैं विशेष करके हलके हित होते है ॥ ४४ ॥ चनेके पापड चने के गुणके समान होते हैं वे सब तेलके भूनेहुवे गुण मध्यम ॥ ४५ ॥ उडदकी पिट्ठी लवण अद्रक हींगसें युक्त करके उस पिट्टीसें पूर्ण मैदाकी की हुई पोलिका || ४६ ॥ वो तेलसें पकीकों पूरिका पंडितोंनें कहीं है रुचिकों करनेवाली म धुर भारी चिकनी बलकेहित रक्तपित्तकों बिगाडनेवाली कहींहै ॥ ४७ ॥ नेत्रकी तेजीकों हरनेवाली गरम पाकमें वातकों हरनेवाली वैसेही घीकी पकी हुई भी नेत्रके हित रक्तपित्तकों हरती है ॥ ४८ ॥ अथ वडा उडदोंकी पिठ्ठी लवण अद्रक हींग इससें युक्त करके वडे बनावै उनकों तेलमें धीरेधीरे पकावै ॥ ४९ ॥ सुकेहुवे वडे बलकों करनेवाले पुष्ट धातुकों बढानेवाले वातरोगोंकों हरते रुचिकों करनेवाले विशेकरके अर्दितरोग नाशक हैं ॥ ५० ॥ विबन्धकों भेदन करनेवाली कफकों न करनेवाली अति अग्निमें पूजित है चूराकरके जीरा हींगके साथ मेठमें डाले ॥ ५१ ॥ और लवण उसमें सब वडौंकों डुबावे उस्मैका वडा शुक्रकों करनेवाला बलकों करनेवाला रोचन भारीहै ।। ५२ ।। विबन्धकों हरता विदाही कफकों करनेवाला वातहरता राइता घोला हुआ वा और कुछ पाचन उनकों खावै ॥ ५३ ॥ राइता इसप्रकार लोक में कहते हैं नवीन मन्थनी कटुतैलसें लेपित रख्खे उस्में निर्मल जल भरके यह चूर्ण डाले || ५४ ॥ राई जीरा लवण हींग सोंठ हल्दी इनसें किया हुवा उसमें वडे डाले और इस वरतनका मुख ठक देवै ॥ ५५ ॥ उस्से तीन दिनके वाद ds for खट्टे होते हैं कांजी बडा रुचिकों करनेवाला वातकों हरता कफकारक५६ शीत दाह शूल अजीर्ण इनकों हरता है और दृष्टिरोगमें अहित.
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