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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृतान्नवर्गः। २७३ अथ अम्लिकामुद्माषकूष्मांडवटकगुणाः. अम्लिका स्वेदयित्वा तु जलेन सह मर्दयेत् । तन्नीरे कृतसंस्कारे वटकान्मजयेत्पुनः ॥ ५७ ॥ अम्लिकावटिकास्ते तु रुच्या वह्निप्रदीपनाः । वटकस्य गुणैः पूर्वैरेषोऽपि च समन्वितः ॥ ५८ ॥ मुद्गानां वटकास्तके भर्जिता लघवो हिमाः। संस्कारजप्रभावेन त्रिदोषशमना हिताः ॥ ५९ ॥ माषाणां पिष्टिका हिङ्गुलवणार्द्रकसंस्कृताः। तया विरचिता वस्त्रे वटिकाः साधुशोषिताः ॥ ६॥ भर्जितास्तप्ततैलैस्ता अथवाम्बुप्रयोगतः। वटकस्य गुणैर्युक्ता ज्ञातव्या रुचिदा भृशम् ॥ ६१॥ कूष्माण्डकवटी ज्ञेया पूर्वोक्तवटिकागुणा । विशेषात्पित्तरक्तघ्नी लघ्वी च कथिता बुधैः ॥ ६२ ॥ मुद्गानां वटिका तद्वद्रचिता साधिता तथा । पथ्या रुच्या तथा लघ्वी मुद्गसूपगुणा स्मृता ॥ ६३ ॥ टीका-इमलीकों गरम करके जलके साथ मले मसाला डाले हुवे उस जलमें वडोंकों डालदेवै ॥ ५७ ॥ वे इमलीके वडे रुचिकों करनेवाले अग्निदीपन पहिले वडोंके गुणके समानहैं ॥ ५८ ॥ मूंगकी वडियां भूनीहुई हलकी शीतल है और संस्कारके प्रभावसें त्रिदोषशमन तथा हित होतीहै ।। ५९ ॥ उडदकी पिढी हिंग लवण आईक इनसें संस्कार कीहुई उस्से बनीहुई कपडेपर अच्छीतरह सुकाय ६० गरम तेलसें भूने अथवा जलमें पकावै इस्कों वडेके गुणके समान जानना चाहिये और अत्यन्त रुचिकों करनेवालीहै ॥६१॥ कोहडौरी पूर्वोक्त वटिकाके गुण समानहै विशेषकरके पित्तरक्तकों हरती हलकी पंडितोंने कहीहै ।।६२॥ अनन्तर मूगकीवडी मूंगकी वटिका बनाईहुई और साधित पथ्य रुचिकों करनेवाली तथा हलकी मूंगकी दालके समान गुणमें कहीहै ॥ ६३ ॥ ३५ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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