________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२७०
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरीतक्यादिनिघंटे
आतपे शोषिता यन्त्रे पिष्टास्ता धूमसी स्मृता ।
धूमसी रचिता चैव प्रोक्ता झर्झरिका बुधैः ॥ ३६ ॥ झर्झरी कफपित्तघ्नी किञ्चिद्वातकरी स्मृता । चणक्या रोटिका रूक्षा श्लेष्मपित्तास्रनुद्गुरुः ॥ ३७ ॥ विष्टम्भिनी न चक्षुष्या तद्गुणा चातिशष्कुली । दालिः संस्थापिता तोयेततोपहृतकञ्चुका ॥ ३८ ॥ शिलायां साधु सम्पिष्टा पिष्टिका कथिता बुधैः । माषपिष्टिकया पूर्णा गर्भी गोधूमचूर्णतः ॥ ३९ ॥ रचता रोटिका सैव प्रोक्ता वेढमिका बुधैः । भवेढमिका बल्या वृष्या रुच्याऽनिलापहा ॥ ४० ॥ उष्मसन्तपर्णी गुर्वी बृंहणी शुक्रला परम् । भिन्नमूत्रमला स्तन्यमेदः पित्तकफप्रदा ॥ ४१ ॥ गुदकीलार्दितः श्वासं पङ्गिशूलानि नाशयेत् ।
टीका – सूके गेहूं के आटेकों जलके साथ गाढा ओसने ॥ ३२ ॥ वटकाकार करकै निर्धूम अग्निमें धीरेधीरे पकावै यह अंगारककडी पुष्ट शुक्रकों करनेवाली हलकी कही है || ३३ ॥ और दीपनी कफकों करनेवाली बलके हित और पीनस श्वास कास इनको हरनेवाली है जबकी रोटी रुचिकों करनेवाली मधुर विशद हलकी ॥ ३४॥ मल शुक्र वातकों करनेवाली बलके हित होती है और कफके रोगोंकों हरती है ॥ ३५ ॥ उड़द की दालकों पानीसें भिगोयकै छिलके निकाली हुईकों धूपमें सुकावै और चकी में पी उस्को धूमसी कही है धूमसी सेवनी हुई वोही झर्झरिका कहीं है || ३६ || झर्झरी कफपित्तकों हरती कुछ एक वातकों करनेवाली कहीं है चनेकी रोटी रूखी और कफ रक्तपित्त इनकों हरती भारी ॥ ३७ ॥ विष्टम्भ करनेवाली नेत्र केहित और उसीके गुण अतिशष्कुली है दालकों पानी में भिगोय के और उस्का छिलका निकालकर ॥ ३८ ॥ सिलपर अच्छी तरह पीसी हुईको पिट्टी पंडितोंनें कही है उडदकी पिठ्ठीकों आटेके भीतर भरके ॥ ३९ ॥ बनाई हुईकों वेटई पंडितोंनें कहा है बेडई बलकों करनेवाली शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली रुचिकों करने वाली वातहरती ||४०|| गरम सन्तर्पणी भारी पुष्ट शुक्रकों करनेवाली है मलमूत्रकों करनेवाली दुग्ध मेद पित्त कफ इनकों देनेवाली है ॥ ४१ ॥ और गुदकील अर्दित श्वास पक्तिशूल इनकों हरती है.
For Private and Personal Use Only