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कृतान्नवर्गः।
२६९ सि?षा लप्सिका ख्याता गुणास्तस्या वदाम्यहम् ॥२८॥ लप्सिका बृंहणी वृष्या बल्या पित्तानिलापहा । स्निग्धा श्लेष्मकरी गुर्वी रोचनी तर्पणी परम् ॥ २९ ॥ शुष्कगोधूमचूर्णेन किञ्चित्पुष्टां च पोलिकाम् । तप्तके स्वेदयेकत्वा भूर्यङ्गारेऽपि तां पचेत् ॥ ३० ॥ सि?षा रोटिका प्रोक्ता गुणं तस्याः प्रचक्ष्महे । रोटिका बलरुद्रुच्या बृंहणी धातुवर्धनी ॥ ३१ ॥
वातघ्नी कफरुगुर्वी दीप्तानीनां प्रपूजिता। टीका-मैदेसें अतीव सूक्ष्म पपडी करे उस्के अनन्तर उस्का तवेपर सेकै उसकों पोलिका विद्वानोंने कहाहै ॥ २६ ॥ उसको लपसीके साथ खावै उसका गुण मंडके समान है तप्तक तवा इसप्रकार लोकमें कहतेहैं मैदेकों घृतसें भूनकर शर्कराके साथ दूधमें डाले ॥२७॥ वह गाढा होजानेपर लोंग मिरच आदि डालै यह सिद्धहुई लप्सी कहीहै उस्के गुणोंकों कहतेहैं ॥ २८॥ लप्सी पुष्ट शुक्रकों करनेवाली बलकों करनेवाली पित्तवातकों हरती चिकनी कफकारी भारी रोचनी तर्पणीहै ॥ २९॥ सूके गेहूंके आटेसें कुछ मोटी रोटीकों तवेपर सेकै और सेककै उस्कों बहुतसे अंगारोंपर पकावै ॥ ३० ॥ इसको सिद्धरोटिका कहीहै उसके गुण कहतेहैं रोटी बलकों करनेवाली रुचिके हित पुष्ट धातुकों बढानेवाली ॥ ३१॥ वातहरती कफकों करनेवाली भारी दीप्ताग्निवालोंकों श्रेष्ठ है.
अंगारकर्कटीरोटीमाषचणकादिपोलिकागुणाः. शुष्कगोधूमचूर्णं तु साम्बु गाढं विमर्दयेत् ॥ ३२ ॥ विधाय वटकाकारं नि मेऽनौ शनैः पचेत् । अङ्गारकर्कटी ह्येषा बृंहणी शुकला लघुः ॥३३॥ दीपनी कफबल्या पीनसश्वासकासजित्। यवजा रोटिका रुच्या मधुरा विशदा लघुः ॥ ३४ ॥ मलशुक्रानिलकरी बल्या हन्ति कफामयान् । माषानां दालयस्तोये स्थापितास्त्यक्तकञ्चकाः ॥ ३५॥
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