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हरीतक्यादिनिघंटे मृदुना वह्निना साध्यः सिद्धो मण्डक उच्यते ॥ २३ ॥ दुग्धेन साज्यखण्डेन मण्डकं भक्षयेन्नरः। अथवा सिद्धांसेन सत्तक्रवटकेन वा ॥ २४ ॥ मण्डको बृंहणो वृष्यो बल्यो रुचिकरो भृशम् ।
पाकेऽपि मधुरो ग्राही लघुर्दोषत्रयापहः ॥ २५ ॥ टीका-पायस परमान्न क्षीरिका यह क्षीरके नाम, शुद्ध अधओंटे दूध घृतयुक्त चावलोंकों पकावै ॥ १५॥ वोह शुद्ध क्षीरिका चीनी घृतसे युक्त उत्तम कहीहै दुर्जर खीर पुष्ट बलको बढानेवालीहै ॥ १६ ॥ नारियलकों छीलके गायके दूध डालै चीना गायकों घृतसे युक्त उस्को मन्दी आंचसे पकावै ॥ १७ ॥ नारियलकी खीर जिकनी शीत अतिपुष्टिकों करनेवाली भारी मधुर शुक्रकों करनेवाली और रक्त पित्त वात इनको हरतीहै ॥१८॥ सूक्ष्मजवके समान बराबर वत्तीकों करके सुकाकर दूधसें पकावै और घृत चीनीके साथ खावै ॥ १९॥ सेवई तर्पणी बलकों देनेवाली भारी पित्तवातकों हरती काविज सन्धि करनेवाली रुचिकों करनेवाली होतीहै उसको बहुत न खावै ॥ २० ॥ अब मंड मुफेड धोये कुटेहुवे और मुकायेहुवे गेहूंकों प्रोक्षित करके चकीसें पिसेहुवे तथा चलनीसें छानेहुवेकों समिता अर्थात मैदा कहाहै ॥ २१ ॥ मैदेको पानीमें घोलकरकै अच्छीतरह मर्दन करै हाथकी लालनासें उस्कों लोई अच्छीतरहसे करै ॥ २२ ॥ नीचेमुख उपर यह फैली हुईकों डालै मन्द अग्निसें सिद्ध हुईको मंड कहतेहैं ॥ २३ ॥ लोई इसप्रकार कहते हैं दूध घृत खांड इनसे मनुष्य मंडेकों खावै अथवा सिद्ध मांससे वादहीके बडेसें खावे ॥ २४ ।। मंडा शुक्रकों करनेवाला और बलके हित अत्यन्त रुचिको करनेवालाहै पाकमेंभी मधुर काविज हलका दोषत्रयको हरताहै ॥ २५ ॥
अथ पर्पटिका तथा लप्सीरोटीगुणाः. कुर्यात्समितयाऽऽतीव तन्वी पर्पटिका ततः । स्वेदयेत्तप्तके तां तु पोलिकां जगदुर्बुधाः ॥ २६ ॥ तां खादेल्लप्सिकायुक्तां तस्या मण्डकवद्गुणाः । समितां सर्पिषाभृष्टां शर्करां पयसि क्षिपेत् ॥ २७ ॥ तस्मिन् घनीकते न्यस्येल्लवङ्ग मरिचादिकम् ।
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