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धान्यवर्गः ।
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प्रसाधिका नीवार और तृणान्न यह नाम हैं ये तीनी शीतल काविज पित्त हरती कफवातकों करनेवाली है || ८२ ॥ पवना लोहित यह पुनेराके नामहैं पुनेरा लाल मधुर कफपित्तकों हरनेवाला है और शुक्रकों हरता कसेला ग्लानिकों करनेवाला हलका कहाहै || ८३ || सब नयाधान मधुर भारी और कफकों रोकनेवाला कहा है वोह ऊपरसें बरसात निकलाहुवा हित होता है क्योंकी वोह बहुत हलका होता है ॥ ८४ ॥ ऊपरसें वरसात गुजरजानेपर सबधान भारीपनको छोड देते हैं परन्तु अपने वीर्यकों नहीं छोड़ते इसके उपरान्त क्रमसें छोडदेतें हैं ॥ ८५ ॥ इनमें जब गेहूं तिल उडद ये नये हितहें पुराने बेरस रूखे और वैसे गुणकारी भी नहीं है || ८६ ॥ पुराने अर्थात् दोवरससे ऊपर के जब आदिक नये निरोगियोंकों हितहैं और पथ्यभोजन करनेवालोंकों तो पुराने हितहैं पुराने जब गेहूं मधुहरिण आदियों के मांसका कवाव इनकों भोजन करनेवाला इसप्रकार वसन्तऋतु में वाग्भटनें कहा है ॥ ८७ ॥
इति श्रीहरीतक्यादिनिघंटे धान्यवर्गः समाप्तः
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