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हरीतक्यादिनिघंटे
अब उस्का गुण कहते हैं सरबीज मधुर रूखा रक्त पित्त कफ इनको हरता है ॥७७॥ और शीतल हलका शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला कसेला वातकों करनेवाला है ॥७८॥ वांसके बीज रूखे कसेले और कटुपाकवाले हैं मूत्रकों रोकनेवाले कफ हरता वातपित्तकों करनेवाले सर होता हैं ॥ ७९ ॥ कुसुंभबीज वरटा और वही वरट्टिकाभी कहा है वा मधुर चिकना और रक्तपित्त कफकों हरता है ॥ ८० ॥ और कसेला शीतल भारी शुक्रकों करनेवाला वात हरता है.
अथ गवेधुकाप्रसाधिकापवननामगुणाः. गवेधुका तु विद्वद्भिर्गवेधुः कथिता स्त्रियाम् । गवेधुः कटुका स्वी कार्श्यत्कफनाशिनी ॥ ८१ ॥ प्रसाधिका तु नीवारस्तृणान्नमिति च स्मृतम् । नीवारः शीतलो ग्राही पित्तघ्नः कफवातकृत् ॥ ८२ ॥ पवनो लोहितः स्वादुर्लोहितः श्लेष्मपित्तजित् । अवृष्यस्तुवरो रूक्षः क्लेदकृत्कथितो लघुः ॥ ८३॥ धान्यं सर्वं नवं स्वादु गुरु श्लेष्मकरं स्मृतम् । तत्तु वर्षोषितं पथ्यं यतो लघुतरं हितम् ॥ ८४ ॥ वर्षोषितं सर्वधान्यं गौरवं परिमुञ्चति ।
नतु त्यजति वीर्यं स्वं क्रमान्मुञ्चत्यतः परम् ॥ ८५ ॥ एतेषु यवगोधूमतिलमाषा नवा हिताः ।
पुराणा विरसा रूक्षा न तथा गुणकारिणः ॥ ८६॥ पुराणा वर्षद्वयादुपरिस्थिता यवादयो नवाः स्वास्थ्यान्प्रति हिताः पथ्याशिनां तु पुराणा हिताः ॥ पुराणा यवगोधूमक्षौद्रजाङ्गलशूल्य भुगिति वासन्ते वाग्भटेनोक्तत्वात् ।
इति श्रीहरीतक्यादिनिघंटे धान्यवर्गः ॥ टीका - गवेधुकाकों विद्वानोंने गवेधु ऐसा स्त्रीलिंग में कहा है इसको देवधान कहते है देवधान कडुवा मधुर कृशताकों करनेवाला कफपित्तकों हरता है ॥ ८१ ॥
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