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धान्यवर्गः ।
बहुवातमलो वर्ण स्थैर्यकारी च पिच्छिलः । कण्ठत्वगामय श्लेष्मपित्तमेदप्रणाशनः ॥ २७ ॥ पीनसश्वासकासोरुस्तम्भलोहिततृट्प्रणुत् । अस्मादतियवो न्यूनस्तोक्यो न्यूनतरस्ततः ॥ २८ ॥ टीका-सांठीके लक्षण और गुणकों कहते हैं जो गर्भमें रहतेहुवेही पाककों प्राप्त होते हैं वोह सांठी हैं षष्टिक शतपुष्प प्रमोदक मुकुन्दक || २० || महाषष्टिक इत्यादिक षष्टिक कहे गये हैं धान के लक्षण देखनेसें यह धान कहें हैं ॥ २१ ॥ साठी मधुर शीतल हलके मलकों बांधनेवाले वातपित्तकों शमन करनेवाले और धानोंके समान गुण में होते हैं || २२ || उन्में साठी बहुत श्रेष्ठ हलकी चिकनी त्रिदोषकों जीतनेवाली मधुर मृदु काविज वलकों देनेवाली ज्वर हरती है || २३ || लाल धानके समान गुणमें होती है उस्सें और गुणमें स्वल्प होती है उसको लोकमें साठी ऐसा कहते हैं शुकधान्य उन्में जब प्रसिद्ध है अतियव अतिशुक कृष्ण और अरुणवर्ण यव तोक्य हरित निःशुक स्वल्पयव यह सब इसनामसें प्रसिद्ध हैं उनके नाम और गुण कहते हैं जब नोंवाले होतेहैं और बेनोंकवाले अतियव कहे गये हैं ॥ २४ ॥ तथा तोक्य उसीके समान और हरित उस्सें अल्पगुण कहागया है जब कसेला मधुर शीतल लेखन मुलायम || २५ || और व्रणमें तिलकेसमान पथ्य रूक्ष मेघा और अग्निकों बढानेवाला हैं पाकमें कटु अभिष्यन्दन करनेवाला स्वरकों अच्छा करनेवाला बलकारक भारी ॥ २६ ॥ बहुत बात मलकों करनेवाला और वर्णस्थिरताकों करनेवाला पिच्छिल है और कंठरोग त्वचाके रोग कफ पित्त मेद इनकों हरता है २७ तथा पीनस श्वास कास ऊरुस्तम्भ रक्त तृषा इनकों हरता है इस्सें अतियव गुणमें न्यून है और तोक्य उस्सेंभी गुणमें न्यून हैं ॥ २८ ॥
अथ गोधूमस्य नामानि लक्षणं गुणाश्च. गोधूमः सुमनोऽपि स्यात्रिविधः स च कीर्तितः । महागोधूम इत्याख्यः पश्चाद्देशात्समागतः ॥ २९॥ माधूली तु ततः किञ्चिदल्पा सा मध्यदेशजा । निःशुको दीर्घगोधूमः क्वचिन्नन्दीमुखाभिधः ॥ ३० ॥ गोधूमो मधुरः शीतो वातपित्तहरो गुरुः ।
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