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हरीतक्यादिनिघंटे कफशुक्रप्रदो बल्यः स्निग्धः सन्धानकत्सरः ॥ ३१ ॥ जीवनो बृंहणो वर्ण्यो व्रण्यो रुच्यः स्थिरत्वकत् । पुराणयवगोधूमक्षौद्रजाङ्गलभागिति ॥ ३२ ॥
टीका - अब गेहूं के नाम लक्षण और गुण कहते हैं गोधूम सुमनभी गहूंके नाहैं वह तीनप्रकारका कहा है बडा गेहूं इसनामसें पश्चिमदेश में होता है || २९ ॥ महागोधूम वडेगोधूम इसनामसें लोकमें प्रसिद्ध हैं मधूलीभी उस्सें कुछ अल्पगुणमें होती है वह मध्यदेश में होनेवाली है वेनोंक लंबा गेहूं कहींपर नंदिमुख नाम है ॥ ३० ॥ गेहूं मधुर शीतल वातपित्तकों हरता भारी कफशुक्रकों करनेवाला बलकों करनेवाला चिकना सन्धान करनेवाला सर जीवन पुष्ट वर्णकों अच्छा करनेवाला - rat रुचिकों करनेवाला और स्थिरताकों करनेवाला है ॥ ३१ ॥ कफकों करनेवाला नवीननकी पुराना जव गंहूं मधु हरिण आदियोंके मांसका कवाल इनका सेवन करनेवाला होता है ।। ३२ ।।
वाग्भटेन वसन्ते गृहीतत्वात् ।
मधूली शीतला स्निग्धा पित्तघ्नी मधुरा लघुः । शुकला बृंहणी पथ्या तद्वन्नन्दीमुखः स्मृतः ॥ ३३ ॥ शमीजा: शिम्बिजाः शिम्बीभवाः सर्याश्च वैदलाः । वैदला मधुरा रूक्षाः कषायाः कटुपाकिनः ॥ ३४ ॥ वातलाः कफपित्तघ्ना बद्धमूत्रमला हिमाः । ऋते मुद्रमसूराभ्यामन्ये त्वाध्मानकारिणः ॥ ३५॥
टीका - वाग्भटनें वसन्तमें लिया है इसवास्ते मधूली अर्थात् न बहुत बडा ऐसे गेहूं शीतल पित्तहरता मधुर होते हैं ।। ३३ ।। शुक्रकों करनेवाले पुष्ट पथ्य अर्थात् हित होते हैं और उसीके समान नन्दीमुख कहेगये हैं शिम्बीधान्य अर्थात जो सैममें होता है उस्के पर्यायोंकों कहते है शमीज शिम्बीज शिम्बीभव सर्य वैदल यह शिम्बीधानके नाम हैं || ३४ ॥ उनके गुण शिम्बीधान्य मधुर रूखे कसेले पाकमें कटु बातकों करनेवाले कफपित्तकों हरते मलमूत्रकों रोकनेवाले शीतल होते हैं मूंग मसूरकों छोड़के बाकी सब पेटकों फुलाते हैं ।। ३५ ।।
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