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हरीतक्यादिनिघंटे न्तिकों करतेहैं और स्त्रियोंकों सुख देनेवाले हैं नपुंसक अवीर्य होतेहैं और अकाम सबसे रहित होते हैं ॥ १६६ ।। स्त्रीजातिके हीरे स्त्रियोंकों देनेचाहिये और नपुंसककों नपुंसक देवै और सबको सर्वदा वीर्यकों बढानेवाला पुरुषजातिको देनेचाहिये ॥ १६७ ॥ विना शोधावा कोढ तथा पसलीकी पीडा पांडुता और लुलापन इनकों करता है इसवास्ते शोधकर फूंके ॥ १६८॥ मारितवजहरिन्मणिमाणिक्यपुष्परागइंद्रनीलगोमेद.
आयुः पुष्टिं बलं वीर्य वर्णं सौख्यं करोति च । सेवितं सर्वरोगघ्नं मृतं वज्यं न संशयः ॥ १६९ ॥ गारुत्मतं मरकतमश्मगर्भो हरिन्मणिः। माणिक्यं पद्मरागः स्याच्छोणरत्नं च लोहितम् ॥ १७ ॥ पष्परागो मञ्जमणिः स्याद्वाचस्पतिवल्लभः ।
नीलं तथेन्द्रनीलं च गोमेदः पीतरत्नकम् ॥ १७१ ॥ टीका-हीरेके भस्मका गुण आयु पुष्टि बल वीर्य वर्ण सौख्य इनकों करता है और हीरेका भस्म सेवन करनेसें सबरोगोंकों हरताहै इसमें कोई संशय नहीं है॥१६९॥ गारुत्मत मरकत अश्मगर्भ हरिन्मणि यह पन्नेके नाम हैं माणिक्य पद्मराग शोणरत्न लोहित यह माणिकके नामहैं पुष्पराग मंजुमणि वाचस्पतिवल्लभ यह पुष्पराजके नामहैं ॥ १७० ॥ नील तथा इन्द्रनील यह नीलमके नाम हैं और गोमेद तथा पीतरत्नक यह गोमेदके नामहैं ॥ १७१ ॥
वेदूर्यमौक्तिकप्रवालादिरत्नानां गुणाः. वैदूर्यं दूरज रत्नं स्यात्केतुग्रहवल्लभम् । मौक्तिकं शौक्तिकं मुक्ता तथा मुक्ताफलं च तत् । शुक्तिः शङ्खो गजकोडः फणी मत्स्यश्च दर्दुरः ॥ १७२ ॥ वेणुरेते समाख्यातास्तज्ज्ञैौक्तिकयोनयः। मौक्तिकं शीतलं वृष्यं चक्षुष्यं बलपुष्टिदम् ॥ १७३ ॥ पुंसि क्कीबे प्रवालः स्यात्पुमानेव तु विद्रुमः। रत्नानि भक्षितानि स्युर्मधुराणि सराणि च ॥
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