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धातुरसरबविषवर्गः।
२०५ क्षत्रियो व्याधिविध्वंसी जरामृत्युहरः स्मृतः। वैश्यो धनप्रदः प्रोक्तस्तथा देहस्य दाढर्यकत् ॥ १६२॥ शूद्रो नाशयति व्याधीन्वयस्तम्भं करोति च। पुंस्त्रीनपुंसकानीह लक्षणीयानि लक्षणैः ॥ १६३ ॥ सुवृत्ताः फलसम्पूर्णास्तेजोयुक्ता वृहत्तराः। पुरुषास्ते समारख्याता रेखाबिन्दुविवर्जिताः ॥ १६४ ॥ रेखाबिन्दुसमायुक्ताः षडरास्ते स्त्रियः स्मृताः। त्रिकोणाश्च सुदीर्घास्ते विज्ञेयाश्च नपुंसकाः। तेषु स्युः पुरुषाः श्रेष्ठा रसबन्धनकारिणः ॥ १६५॥ स्त्रियः कुर्वन्ति कायस्य कान्ति स्त्रीणां सुखप्रदाः। नपुंसकास्त्ववीर्याः स्युरकामाः सत्ववर्जिताः ॥ १६६ ॥ स्त्रियः स्त्रीभ्यः प्रदातव्याः क्लीबं क्लीने प्रयोजयेत् । सर्वेभ्यः सर्वदा देयाः पुरुषा वीर्यवर्धनाः ॥ १६७ ॥ अशुद्धं कुरुते वज्नं कुष्टं पार्श्वव्यथां तथा ।
पाण्डुतां पङ्गुलत्वं च तस्मात्संशोध्य मारयेत् ॥ १६८॥ टीका-उस्में हीरक हीरा इसप्रकार लोकमें प्रसिद्ध है उस्के नाम लक्षण और गुण कहतेहैं हीरक पुल्लिंगमें और वज्र नपुंसकमें होता है चंद्रमणिवर यह हीरेके नाम हैं वोह श्वेत ब्राह्मण कहागया है और लाल क्षत्रिय कहाहै ॥ १६० ॥पीला वैश्य और काला शूद्र ऐसे हीरा चार वर्णका होताहै रसायनमें ब्राह्मण और सबसिद्धियोंकों देनेवाला है ॥ १६१ ॥ क्षत्रिय रोग हरता और बुढापा तथा मृत्युकों हरता वैश्य धनदेनेवाला कहा है तथा शरीरकी दृढता करनेवाला है ॥ १६२ ॥शूद्र रोगोंकों हरता है और वयकों स्थापन करताहै इसमें स्त्री पुरुष और नपुंसक इनके लक्षण होतेहैं ॥ १६३ ॥ अच्छे गोल सब फलवाले तेजोयुक्त बहुत बड़े और रेखा बिंदुसे रहित ऐसे हीरे पुरुष कहेगयेहैं ॥ १६४ ॥ और रेखा बिंदुसे युक्त छकोनवाले वे स्त्री कहेगयेहैं त्रिकोण और अच्छे लम्बे वे नपुंसक जानने चाहिये उनमें पुरुष श्रेष्ठहैं और वे पारेको बांधनेवाले हैं ॥ १६५ ॥ स्त्रीजातिके हीरे शरीरकी का
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