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धातुरसरत्नविषवर्गः।
२०७ चक्षुष्याणि च शीतानि विषनानि तानि च ॥ १७४ ॥
मङ्गल्यानि मनोज्ञानि ग्रहदोषहराणि च । टीका-वैदूर्य दूरज रत्नकेतु ग्रहवल्लभ यह वैदूर्यके नाम हैं मौक्तिक शौक्तिक मुक्ता तथा मुक्ताफल यह मोतीके नाम, शीप शंख हाती शूकर सर्प मछली मेंडक ॥ १७२ ॥ और वांस यह उसके जाननेवालोंने मोतीके उत्पत्तिस्थान कहेहैं मोती शीतल शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला नेत्रके हित और वल पुष्टिको देनेवाला है ॥ १७३ ॥ पुल्लिंग और नपुंसकमें प्रवाल होताहै और विद्रुम पुल्लिंगमें ही होताहै रत्नभक्षण कियेहुवे मधुर और सर होते हैं तथा नेत्रके हित शीत विष हरताहै और धारण किये हुवे ॥१७॥ मङ्गलके करनेवाले मनोज्ञ तथा ग्रहदोषकों हरतेहैं.
अथ ग्रहप्रियरत्नउपरत्नगुणाः. माणिक्यं तरणेः सुजातममलं मुक्ताफलं शीतगो
हेयस्य तु विद्रुमो निगदितः सौम्यस्य गारुत्मतम् । देवेज्यस्य च पुष्परागमसुराचार्यस्य वज्नं शने
लं निर्मलमन्ययोर्निगदिते गोमेदवैडूर्यके ॥ १७५ ॥ उपरत्नानि काचश्च कर्पूराश्मा तथैवच । मुक्ता शुक्तिस्तथा शङ्ख इत्यादीनि बहून्यपि ॥ १७६ ॥ गुणा यथैव रत्नानामुपरत्नेषु ते तथा।
किन्तु किश्चित्ततो हीना विशेषोऽयमुदाहृतः ॥ १७७॥ कौनसा रत्न किसग्रहके प्रीतिकर होनेसें दोषनाशक होता है इस प्रश्नमें उस्का उत्तर कहतेहैं रत्नमालामें सूर्यका माणिक चंद्रका मोती मङ्गलका मूंगा बुधका पन्ना कहाहै बृहस्पतिका पुष्पराज शुक्रका हीरा शनीका निर्मल नीलमणि और राहुका गोमेद केतुका वैडूर्य यह कहाहै ॥ १७५ ॥ काच कापूरीपत्थर और मोतीकी सीप इत्यादि शंख बहुतसे उपरत्न हैं ॥ १७६ ॥ उपरत्न अर्थात् गौणरत्न कर्पूरीपत्थर मोतीकी सीप हत्नोंके जैसे गुणहैं वैसेही उपरत्नोंमेंभी गुण कहे परन्तु कुछ उनसे कमहैं विशेष यह कहाहै ॥ १७७॥
वत्सनाभहारिद्रसक्तुकप्रदीपनस्वरूप. विषं तु गरलः क्ष्वेडस्तस्य भेदानुदाहरे।
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