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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ हरीतक्यादिनिघंटे जीत कडुबा तीखा उष्ण पाकमें कटु रसायन है ॥ ७७ ॥ और छेदन करनेवाला तथा योगवाही है और कफ मेद अश्मरी शर्करा इनकों हरता है तथा मूत्रकृच्छ्र क्षय श्वास वातकी ववासीर पाण्डुता ॥ ७८ ॥ मिरगी उन्माद शोथ कुष्ठरोग उदररोग कृमि इनकों हरता है ॥ ७९ ॥ सौवर्ण शिलाजीत वर्ण में जवाफूलके समान होता है और रसमें मधुर कटुतिक्त शीतल पाकमें कटु होता है ॥ ८० ॥ चांदीके मैलका शिलाजीत वर्ण में श्वेत शीतल कटु पाकमें मधुर होता है तांबेका वर्ण में मोरके कंके समान तीखा उष्ण होता है ॥ ८१ ॥ लोहेका रंग गिद्धके पंखके समान हो - ता तथा पाक कटु शीतल और सबमें श्रेष्ठ कहा है ॥ ८२ ॥ अथ रसस्य पारदस्य च निरुक्तिः. रसायनार्थिभिर्लोकैः पारदो रस्यते यतः । ततो रस इति प्रोक्तः स च धातुरपि स्मृतः ॥ ८३॥ शिवाङ्गात्प्रच्युतं रेतः पतितं धरणीतले । तद्देहसारजातत्वाच्छुक्कमच्छमभूच्च तत् ॥ ८४ ॥ क्षेत्रभेदेन विज्ञेयं शिववीर्यं चतुर्विधम् । श्वेतं रक्तं तथा पीतं कृष्णं तत्तु भवेत्क्रमात् ॥ ८५ ॥ ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः शूद्रश्व खलु जातितः । श्वेतं शस्तं रुजां नाशे रक्तं किल रसायनम् ॥ ८६ ॥ धातुवेधे तु तत्पीतं खगतौ कृष्णमेव च । पारदो रसधातुश्च रसेंद्रश्च महारसः ॥ ८७ ॥ चपलः शिववर्यं च रसः सूतः शिवाह्वयः । पारदः षड्रसः स्निग्धस्त्रिदोषघ्नो रसायनः ॥ ८८ ॥ योगवाही महावृष्यः सदा दृष्टिबलप्रदः । सर्वामयहरः प्रोक्तो विशेषात्सर्वकुष्ठनुत् ॥ ८९ ॥ स्वस्थ रसो भवेद्ब्रह्मा बद्धो ज्ञेयो जनार्दनः । रञ्जितः कामितश्चापि साक्षादेवो महेश्वरः ॥ ९० ॥ मूच्छितो हरिति रुजं बन्धन मनुभूय खे गतिं कुरुते । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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