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धातुरसरत्नविषवर्गः।
१९३ अजरीकरोति हि मृतः कोऽन्यः करुणाकरः सूतात् ॥९१॥ टीका-और उस्की निरुक्ति जिसकारण रसायन चाहनेवाले लोग पारा खातेहैं उस कारण रस इस प्रकारसे कहाहै और वोह धातुभी कहागयाहै ॥ ८३ ॥ पारेकी उत्पत्ति नाम लक्षण गुण कहते हैं शिवजीके अंगसे निकलाहुवा वीर्य पृथ्वीपर गिरा उनके देहसारसे उत्पन्न होनेसें वोह श्वेत और स्वच्छ हुवा ॥८४॥ पारा क्षेत्रभेदसें चारप्रकारका जानना चाहिये सफेद लाल पीला काला ॥ ८५॥ क्रमसें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र इनजातसें होताहै श्वेत रोगोंके हरनेमें प्रशस्त है और लाल रसायन ॥ ८६ ॥ धातुवेधमें पीला और आकाशगमनमें काला प्रशस्तहै पारद रसधातु रसेन्द्र महारस ॥ ८७॥ चपल शिववीर्य रस सूत शिवनाम यह पारेके नाम हैं पारा छहरसोंसे युक्त चिकना त्रिदोष हरता रसायन ॥ ८८॥ योगवाही अत्यन्त शुक्रकों करनेवाला और दृष्टिबलकों देनेवाला है तथा सबरोगोंकों हरता और विशेषकरके कुष्ठहरता कहा है ॥ ८९ ॥ स्वस्थ रस ब्रह्मा होताहै और बद्धाहुवा पारा विष्णु होताहै रंजित तथा कामित साक्षात् महादेवहै ॥ ९०॥ मूच्छित पारा रोगोंकों हरताहै और बन्धनकों जानकर आकाशमें गतिकों करताहै तथा मराहुवा अजर करता है इसवास्ते पारेसें सिवाय और कौन करुणाकरहै ॥ ९१ ॥
असाध्यो यो भवेद्रोगो यस्य नास्ति चिकित्सितम् ।
रसेन्द्रो हन्ति तं रोगं नरकुञ्जरवाजिनाम् ॥ ९२ ॥ मलं विषं वह्निगिरित्वचापलं नैसर्गिकं दोषमुशन्ति पारदे । उपाधिजौ द्वौ त्रपुनागयोगजौ दोषो रसेन्द्रे कथितो मुनीश्वरैः ९३ मलेन मूर्छा मरणं विषेण दाहोऽग्निना कष्टतरः शरीरे । देहस्य जाड्यं गिरिणा सदा स्याचाञ्चल्यतो वीर्यहृतिश्च पुंसाम् ९४ वङ्गेन कुष्ठं भुजगेन षण्ढो भवेदतोऽसौ परिशोधनीयः।
वह्निर्विषमलं चेति मुख्या दोषास्त्रयो रसे ॥ ९५ ॥ एते कुर्वन्ति सन्तापं मृति मूछौं नृणां क्रमात् । अन्येऽपि कथिता दोषा भिषग्भिः पारदे यदि ॥९६ ॥
तथाप्यते त्रयो दोषा हरणीया विशेषतः। संस्कारहीनं खल्लु सूतराजं यः सेवते तस्य करोति बाधाम् ।
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