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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धातुरसरत्नविषवर्गः। भग्नसंधानजननं व्रणशोधनरोपणम् ॥ ७४ ॥ ठीका-सिंदूर रक्तरेणु नागगर्भ सीसज यह सिन्दूरके नाम हैं ॥ ७२ ॥ सिन्दूर सीसेका उपधातु है और गुण सीसेके समान हैं तथा संयोगज प्रभावसे उस्केभी और गुण कहे हैं ॥ ७३ ॥ सिंदूर गरम विसर्प कुष्ठ खुजली इनकों हरता और टूटेहुवेको जोडनेवाला व्रणशोधन और रोपण है ॥ ७४ ॥ अथ शिलाजतुतदुत्पत्तिर्नामलक्षणगुणाश्च. निदाघे धर्मसन्तता धातुसारं धराधराः । निर्यासवत्प्रमुञ्चन्ति तच्छिलाजतु कीर्तितम् ॥ ७५ ॥ सौवर्णं राजतं ताम्रमायसं तच्चतुर्विधम् । शिलाजत्वद्रिजतु च शैलनिर्यास इत्यपि ॥ ७६ ॥ गैरेयमइमजं चापि गिरिजं शैलधातुजम् । शिलाजं कटु तिक्तोष्णं कटुपाकं रसायनम् ॥ ७७ ॥ छेदि योगवहं हन्ति कफमेदाइमशर्कराः । मूत्रकृच्छ्रे क्षयं श्वासं वाताासि च पाण्डुताम् ॥ ७८ ॥ अपस्मारं तथोन्मादं शोथकुष्टोदरकमीन् ॥ ७९ ॥ सौवर्णं तु जवापुष्पवर्णं भवति तद्रसात् । मधुरं कटु तिक्तं च शीतलं कटुपाकि च ॥ ८० ॥ राजतं पाण्डुरं शीतं कटुकं स्वादुपाकि च । तानं मयूरकण्ठाभं तीक्ष्णमुष्णं च जायते ॥ ८१ ॥ लौहं जटायूपक्षाभं तत्तिक्तलवणं भवेत्। विपाके कटुकं शीतं सर्वश्रेष्ठमुदाहृतम् ॥ ८२॥ टीका-उस्की उत्पत्ति नाम लक्षण गुण ग्रीष्ममें संतप्तहुवे पर्वत धातुके सारकों गोंदके समान छोडतेहैं उस्कों शिलाजीत कहतेहैं ॥ ७५ ॥ सोनेका चांदीका तांबेका और लोहेका एसे चार प्रकारका होताहै शिलाजतु अद्रिजतु शैलनिर्यास ॥ ७६ ॥ गैरेय अश्मज गिरिज शैलधातुज यह शिलाजीतके नाम हैं शिला For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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