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आम्रादिफलवर्गः।
१७१ हरनेवाला है. और वह पका हुवा मधुर, चिकना, कफकों करनेवाला शीतल, भारी है ॥ १०५॥ पयःप्रसादि, कतक, और उस्का फलभी कतक है. निर्मलीका फल नेत्रके हित और जलकी निर्मलता करनेवाला है ॥ १०६॥ और वात कफकों हरनेवाला शीतल मधुर कसेला भारी है.
अथ द्राक्षानामगुणाः. द्राक्षा स्वादुफला प्रोक्ता तथा मधुरसापि च ॥ १०७ ॥ मृद्दीका हारहरा च गोस्तनी चापि कीर्तिता। द्राक्षा पक्का सरा शीता चक्षुष्या वृंहणी गुरुः॥ १०८॥ स्वादुपाकरसा स्वर्या तुवरा स्पृष्टमूत्रविट् । कोष्ठमारुतद् वृष्या कफपुष्टिरुचिप्रदा ॥ १०९॥ हन्ति तृष्णाज्वरश्वासवातपित्तास्त्रकामलाः। कृच्छ्रास्वपित्तसंमोहदाहशोषमदात्ययान् ॥ ११०॥ आमा स्वल्पगुणा गुर्वी सैवाम्ला रक्तपित्तकत्।
वृष्या स्याद्गोस्तनी द्राक्षा गुर्वी च कफपित्तनुत् ॥ १११ ॥ टीका-द्राक्षा, स्वादुफला, मधुरसा ॥ १०७ ॥ मृद्वीका, हारहूरा, गोस्तनी, यह दाखके नाम हैं. पकीहुवी दाख सर, शीतल, नेत्रको हितकरनेवाली, पुष्ट, भारी होता है ॥ १०८ ॥ और पाकरसमें मधुर स्वरकों अच्छा करनेवाला कसेला मलमूत्रकों करनेवाला है. और कोष्ठ, वातकों करनेवाली, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली, तथा कफ, पुष्टि, रुचि, इनकों देनेवाली है ॥ १०९॥ और तृषा, ज्वर, श्वास, वात, रक्त, कामला इनकों हरती है. और मूत्रकृच्छ्र, रक्तपित्त, मोह, दाह, शोष, मदात्यय, इनकोंभी हरती है ॥ ११० ॥ और कच्ची उस्सें अल्पगुणवाली, भारी, होती है और वोही खट्टी, रक्तपित्तकों करनेवाली है. गोस्तनी दाख, शुक्रकों उत्पन्नकरनेवाली, भारी और कफपित्तकों हरती है ॥ १११ ॥
गोस्तनी (मनुका) इति लोके. अबीजान्या स्वल्पसेधा गोस्तनीसहशी गुणैः । द्राक्षा पर्वतजा लघ्वी साम्ला श्लेष्माम्लपित्तरुत् ।
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