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हरीतक्यादिनिघंटे द्राक्षा पर्वतजा याहकतादृशी करमर्दिका ॥ ११२॥ टीका-गोस्तनीको मनुका लोकमें कहतेहैं. दूसरी बीजसेंरहित बहुतछोटी मुनकाके समान गुणमें होतीहै. पहाडीदाख हलकी होतीहै और कुछ खट्टी होतीहै तथा कफ अम्लपित्तकों करनेवाली है ॥११२॥ जिसप्रकारकी पहाडीदाख होतीहै वैसीही करोंदी होतीहै ॥
__ अथ भूमिखर्जूरिकानामगुणाः. भूमिखर्जूरिका स्वादी दुरारोहा मृदुच्छदा । तथा स्कन्धफला काककर्कटी स्वादुमस्तका ॥ ११३॥ पिण्डखजूंरिका त्वन्या सा देशे पश्चिमे भवेत् । खर्जुरी गोस्तनाकारा परद्वीपादिहागता ॥ ११४॥ जायते पश्चिमे देशे सा च्छोहारेति कीर्त्यते । खर्जूरीत्रितयं शीतं मधुरं रसपाकयोः । स्निग्धं रुचिकरं हृद्यं क्षतक्षयहरं गुरु ॥ ११५ ॥ तर्पणं रक्तपित्तघ्नं पुष्टिविष्टम्भशुक्रदम् । कोष्ठमारुतहबल्यं वान्तिवातकफापहम् । ज्वरातिसारक्षुत्तृष्णाकासश्वासनिवारकम् ॥ ११६ ॥ मदमूर्छामरुत्पित्तमद्योद्भूतगदान्तकृत् । महतीभ्यां गुणैरल्पा स्वल्पखर्जूरिका स्मृता ॥ ११७॥ खर्जूरीतरुतोयं तु मदपित्तकरं भवेत् । वातश्लेष्महरं रुच्यं दीपनं बलशुक्ररुत् ॥ ११८॥ सुलेमानी तु मृदुला दलहीनफला च सा ।
सुलेमानी श्रमभ्रान्तिदाहमूर्छास्त्रपित्तहत् ॥ ११९॥ टीका-भूमिखर्जूरिका, स्वाद्वी, दुरारोहा, मृदुच्छदा, स्कंधफला, काककर्कटी, स्वादुमस्तका, यह खजूरके नाम हैं ॥ ११३ ॥ और दूसरी पिण्डखजूर, वोह पश्चिममें होतीहै. सुनकाके समान जो खजूर होतीहै वोह और द्वीपसे यहां आई
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