________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७०
हरीतक्यादिनिघंटे तत्तु स्वादु त्रिदोषघ्नं तृड्दाहज्वरनाशनम् ॥ १०॥ हृत्कण्ठमुखगन्धघ्नं तर्पणं शुक्रलं लघु । कषायानुरसं ग्राहि स्निग्धं मेधाबलापहम् ॥ १०१॥ स्वादम्लं दीपनं रुच्यं किंचित्पित्तकरं लघु।
अम्लं तु पित्तजनकमम्लं वातकफापहम् ॥ १०२॥ टीका-दाडिम, करक, दन्तबीज, लोहितपुष्पक, यह अनारके नाम हैं ॥१९॥ उस्का फल तीनप्रकारका होता है मधुर मधुरयुक्त खट्टा, और केवलखट्टा, उनमें मधुर त्रिदोष हरता और तृषा, दाह, ज्वर, इनकों हरता है ॥ १०० ॥ हृदय, कण्ठ, मुखगंध, इनकों हरता, तर्पण, शुक्रकों करनेवाला, हलका, होता है. पीछेसें कसेला, काविज, चिकना, होता है और मेधा, बल, इनकों हरता है ॥ १०१ ॥
और खट्टा, मीठा, दीपन, रुचिकों करनेवाला, हलका, होता है. खट्टा पित्तकों करनेवाला और वातकफकों हरता है ॥ १०२ ॥
अथ बहुवार तथा कतकनामगुणाः. बहुवारस्तु शीतः स्यादुद्दालो बहुवारकः । शेतुः श्लेष्मातकश्चापि पिच्छिलो भूतवृक्षकः ॥ १०३ ॥ बहुवारो विषस्फोटव्रणवीसर्पकुष्ठनुत् । मधुरस्तुवरस्तिक्तः केश्यश्च कफपित्तहृत् ॥ १०४ ॥ फलमामं तु विष्टंभि रूक्षं पित्तकफास्त्रजित् । तत्पक्कं मधुरं स्निग्धं श्लेष्मलं शीतलं गुरु ॥ १०५॥ पयः प्रसादि कतकं कतकं तत्फलं च तत् । कतकस्य फलं नेत्र्यं जलनिर्मलताकरम् ॥ १०६॥
वातश्लेष्महरं शीतं मधुरं तुवरं गुरु । टीका-बहुवार शीत, उद्दाल, बहुवारक, शेलु, श्लेष्मातक, पिच्छिल, भूतवृक्षक, यह बहुवारके नाम हैं ॥ १०३ ॥ बहुवार विष, विस्फोट, व्रण, वीसर्प, कुष्ठ, इनकों हरता है. और मधुर, कसेला, तिक्त, केशको हित कफ पित्तकों हरता है ॥ १०४॥ कच्चा फल रूखा, विष्टम्भ करनेवाला, पित्त, कफरक्तकों
For Private and Personal Use Only