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आम्रादिफलवर्गः ।
अहृद्यं हन्ति तृष्णास्त्रदाहश्वासक्षतक्षयान् ॥ ९५ ॥
टीका - श्रृंगाटक, जलफल, त्रिकोणफल, यह सिंघाडेके नाम हैं ॥ ९० ॥ सिंघाडा शीतल, मधुर, भारी, शुक्रकों करनेवाला, कसेला काविज, और शुक्र, वात, कफ, इनकों देनेवाला तथा पित्तरक्त, दाह, इनकों हरताहै ॥ ९१ ॥ कुमुके बीजकों कैरिविणीफल ऐसा पंडितोंनें कहा है कुमुद्वतीका बीज, मधुर, रूखा, शीतल होताहै ॥ ९२ ॥ मधुक, गुडपुष्प, मधुपुष्प, मधुस्रव, वानप्रस्थ, मधुष्ठील, जलज, मधूलक, ॥ ९३ ॥ यह महुवेके नाम है. महुवा मधुर, शीतल, भारी, पुष्ट, बल शुक्रकों करनेवाला और वातपित्तकों हरता कहाहै ॥ ९४ ॥ उस्का फल शीतल, भारी, मधुर, शुक्रकों करनेवाला, वातपित्तकों हरता, और अहृद्य होता है तथा तृषा, रक्त, दाह, श्वास, क्षतक्षय, इनकों हरता है ॥ ९५ ॥
अथ परूपक तथा तृतानामगुणाः. परूषकं तु परुषमल्पास्थि च परापरम् । पुरूषकं कषायाम्लमामं पित्तकरं लघु ॥ ९६ ॥ तत्पक्कं मधुरं पाके शीतं विष्टम्भ बृंहणम् । हृद्यं तु पित्तदाहास्त्रज्वरक्षयसमीरहृत् ॥ ९७ ॥ तूतः स्थूलश्च पूगश्च क्रमुको ब्रह्मदारु च । तूतं पक्कं गुरु स्वादु हिमं पित्तानिलापहम् ॥ ९८॥ तदेवामं गुरु सरमम्लोष्णं रक्तपित्तकृत् ।
टीका - परूषक, परुष, अल्पास्थि, परापर यह फालसेके नाम है. फालसा कसेला खट्टा पित्तकों करनेवाला, हलका, होता है ॥ ९६ ॥ वह पकाहुवा पाकमें मधुर, शीतल, विष्टम्भी, पुष्ट होता है और हृद्य, पित्त, दाह, रक्त, ज्वर, क्षय, वात, इनकों हरता है ॥ ९७ ॥ तूत, स्थूल, पूग, क्रमुक, ब्रह्मदाह, यह तूतके नाम हैं पकाहुवा तूत भारी, मधुर, शीतल, पित्तवातकों हरता है ॥ ९८ ॥ वोही कच्चा भारी सर, खट्टा, उष्ण, रक्तपित्तकों करनेवाला है.
अथ दाडिम (अनार) नामगुणाः.
दाडिमः करको दन्तबीजो लोहितपुष्पकः ॥ ९९ ॥ तत्फलं त्रिविधं स्वादु स्वाद्वम्लं केवलाम्लकम् ।
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