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पुष्पादिवर्गः। तुलसी कटुका तिक्ता हृद्योष्णा दाहपित्तकत् । दीपनी कुष्ठरुच्छ्रास्त्रपार्श्वरुक्कफवातजित् ॥ ६१ ॥
शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणैस्तुल्या प्रकीर्तिता। टीका-काली और श्वेत तुलसी, सुरसा, ग्राम्या, सुलभा, बहुमञ्जरी, अपेतराक्षसी, गौरी, शूलनी, देवदुन्दुभी यह तुलसीके नाम हैं ॥ ६० ॥ तुलसी कडवी तिक्त हृद्य उष्ण दाह पित्तकों करनेवाली, और दीपन है, तथा कुष्ठ, मूत्रकृच्छ्र, रक्त, पसलीकी पीडा, कफ, वात, इनको हरनेवाली है ॥ ६१॥ काली और श्वेत तुलसी गुणमें समान कही गई है.
अथ मारुता(मरुआ)नामगुणाः. मारुतोऽसौ मरुबको मरुन्मरुरपि स्मृतः ॥ ६२ ॥ फणी फणिजकश्चापि प्रस्थपुष्पः समीरणः । मरुदग्निप्रदो हृद्यस्तीक्ष्णोष्णः पित्तलो लघुः ॥ ६३ ॥ वृश्चिकादिविषश्लेष्मवातकुष्ठरुमिप्रणुत् ।
कटुपाकरसो रुच्यस्तिक्तो रूक्षः सुगन्धिकः ॥ ६४ ॥ टीका-मारुत, मरुवक, मरुत, मरु ॥ ६२॥ फणी, फणिज्जक, प्रस्थपुष्प, समीरण, यह मरुआके नाम हैं. मरुआ अग्निकों करनेवाला, हृद्य, तीक्ष्ण, उष्ण, पित्तकों करनेवाला, हलका है ॥ ६३ ॥ और विच्छ्रआदियोंके विष, कफ, वात, कुष्ठ, कृमि, इनकों हरता है. और पाक रसमें कडवा, रुचिकों करनेवाला, तिक्त, रूखा, सुगन्धिक होता है ॥ ६४ ॥
अथ दमनक(दवना)नामगुणाः. उक्तो दमनको दान्तो मुनिपुत्रस्तपोधनः । गन्धोत्कटो ब्रह्मजटो विनीतिः कलपत्रकः ॥ ६५॥ दमनस्तुवरस्तितो हृद्यो वृष्यः सुगन्धिकः ।
ग्रहणाद्विषकुष्ठास्त्रक्लेदकण्डूत्रिदोषजित् ॥६६॥ टीका-दमनक, दान्त, मुनिपुत्र, तपोधन, गन्धोत्कट, ब्रह्मजट, विनीति, कलपत्रक, यह दवनाके नाम हैं ॥६५॥ दवना कसेला, तिक्त, हृद्य, शुक्रकों उत्पन्न
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