SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ हरीतक्यादिनिघंटे इसीनामसे प्रसिद्ध है. तिलक, क्षुरक, श्रीमान् , पुरुष, छिन्नपुष्पक, यह तिलकके नाम हैं. तिलक, पाकरसमें कडवा, उष्ण, रसायन है ॥ ५४ ॥ तथा कफ, कुष्ठ, कृमि, वस्ति, मुख, दंत, इन रोगोंकों हरता है. अथ बन्धूक तथा ऊर्ध्वपुष्पनामगुणाः. फन्धको बंधूजीवश्च रक्तो माध्याह्निकोऽपि च ॥ ५५॥ बन्धूकः कफळत् ग्राही वातपित्तहरो लघुः। ऊर्ध्वपुष्पं जपा चाथ त्रिसन्ध्या सारुणा सिता ॥ ५६ ॥ जपा संग्राहिणी केश्या त्रिसन्ध्या कफवातजित् । ठीका-बन्धूक, बन्धुजीव, रक्त, माध्यान्हिक, यह दुपहरियाके नाम हैं. दुपहरिया कफकों करनेवाला, काविज, वातपित्तकों हरता है, हलका होता है ॥५५॥ ऊर्ध्वपुष्प, जवापुष्प, त्रिसन्ध्या, अरुणा, सिता, यह जपापुष्पके नाम हैं. जवापुष्प काविजकों अच्छा करनेवाला, कफको हरनेवाला है ॥ ५६ ॥ अथ सेन्दूरी तथा अगस्तिनामगुणाः. सिन्दूरी रक्तवीजा च रक्तपुष्पा सुकोमला ॥ ५७ ॥ सिन्दूरी विषपित्तात्रतृष्णावान्तिहरी हिमा। अथागस्त्यो वङ्गसेनो मुनिपुष्पो मुनिद्रुमः ॥ ५८॥ अगस्तिः पित्तकफजिच्चातुर्थकहरो हिमः। रूक्षो वातकरस्तिक्तः प्रतिश्यायनिवारणः ॥ ५९ ॥ टीका-सिंदूरी, रक्तवीजा, रक्तपुष्पा, सुकोमला, यह सिंदूरियाके नाम हैं ॥ ५७॥ सिन्दूरी, विष, रक्त, पित्त, तृषा, वमन, इनकों हरती है, शीतल है. अगस्त्य, वंगसेन, मुनिपुष्प, मुनिद्रुम, यह अगस्त्यके नाम हैं ॥ ५८ ॥ अगस्त्य पित्त, कफकों हरनेवाला, और चातुर्थक ज्वरको हरनेवाला शीतल है, और रूखा, वातकों करनेवाला, तिक्त, प्रतिश्यायको हरनेवाला है ॥ ५९॥ अथ तुलसीशुक्ला कृष्णा च. तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमञ्जरी । अपेतराक्षसी गौरी शूलनी देवदुन्दुभिः ॥ ६० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy