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पुष्पादिवर्गः। सैरेयकः श्वेतपुष्पः सैरेयः कटसारिका। सहाचरः सहचरः स च भिन्द्यपि कथ्यते ॥ ४९ ॥ कुरण्टकोऽत्र पिने स्याद्रक्ते कुरबकः स्मृतः। नाले बाणादयोरुक्तो दासे आर्तगलश्च सः ॥ ५० ॥ सैरेयः कुष्ठवातास्त्रकफकण्डूविषापहः ।
तिक्तोष्णो मधुरोऽनम्लः सुस्निग्धः केशरञ्जनः ॥ ५१ ॥ टीका-अम्लात, अम्लाटन, तथा अम्लातक, कुरंटक, वर्णपुष्प, महासह यह बाणपुष्पके नाम हैं ॥४७॥ बाणपुष्प कसेला, गरम, चिकना, मधुर, तिक्त होता है. ॥४८॥ सैरेयक, श्वेतपुष्प, सैरेय, कटसारिका, सहाचर, सहचर, भिन्दि, यह कटसरैयाके नाम हैं ॥ ४९ ॥ कटसरैया, पीलीफूलवालीकों कुरंटक कहते हैं और लालफूलवालीको कुरबक कहा है और दुरंगे फूलवाली दास आर्तगल कही है ॥५०॥ कटसरैया कुष्ठ, वातरक्त, कफ, खुजली, विष, इनकों हरती है और तिक्त, गरम, मधुर, खट्टी, चिनकी, केशकी रञ्जन होती है ॥ ५१॥
अथ कुन्दनामगुणाः, कुन्दं तु कथितं माध्यं सदापुष्पं च तत्स्मृतम् । कुन्दं शीतं लघु श्लेष्मशिरोरुग्विषपित्तहत् ॥ ५२ ॥
अथ मुचुकुन्द तथा तिलकनामगुणाः. मुचुकुन्दः क्षत्रवृक्षश्चित्रकः प्रतिविष्णुकः। मुचुकुन्दः शिरःपीडा पित्तास्त्रविषनाशनः ॥ ५३॥ तिलकः क्षुरकः श्रीमान्पुरुषश्छिन्नपुष्पकः । तिलकः कटुकः पाके रसे चोष्णो रसायनः ॥ ५४॥
कफकुष्ठकमीन्बस्तिमुखदन्तगदान्हरेत् । टीका-कुन्द, माध्य, सदापुष्प, यह कुन्दके नाम हैं. कुन्द शीतल, हलका, कफ, शिरकी पीडा, विष, पित्त, इनको हरता है ॥ ५२॥ मुचुकुन्द, क्षत्रवृक्ष, चित्रक, प्रतिविष्णुक, यह मुचुकुन्दके नाम हैं. मुचुकुन्द, शिरकीपीडा, रक्तपित्त, विष, इनकों हरता है ॥ ५३॥ तिलक इस्का फूल तिलके समान होता है और
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