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गडूच्यादिवर्गः। शारिवा(गौरीआसाऊ)नामगुणाः. (इयमपि जम्बूवत्पत्रा दुग्धगर्भा व्रततिर्भवति) धवला शारिवा गोपी गोपकन्या कशोदरी । स्फोटा श्यामागोपवल्ली लताऽस्फोता च चन्दना ॥२३७॥
(क) गोपी गोपस्य स्त्री पुंयोगादिङीप् । गोपा गां पातीति गोपा गोपकन्या श्यामापदेन कृष्णा श्वेतापि सारिवा कथ्यते सा। श्वेतेन सारिवापदस्य प्रयुक्तत्वात् । सारिवा च निशि श्यामाश्यामा च हरिता सिता। सारिवायुगलं स्वादु स्निग्धं शुक्रकरं गुरु ॥ २३८॥ अग्निमान्द्यारुचिश्वासकासामविषनाशनम् ।
दोषत्रयामप्रदरज्वरातीसारनाशनम् ॥ २३९॥ टीका-इस्केभी जमनकेसे पत्ते होते हैं, भीतर दूध होता है, और लतावाली होती है. धवला, सारिवा, मोपी, गोपकन्या, कृशोदरी, स्फोटा, श्यामा, गोपवल्ली, लता, आस्फेता, चन्दना ॥२३७॥ यह श्वेतसारिवाके नाम हैं. (क) (गोपी) गोपकी स्त्री. पुंयोगसें डीप् प्रत्यय हुवा है. (गोपा) गायकों जो रक्षण करता है वह गोप है (गोपकन्या) श्यामापदसें काली और सुपेद सारिवा कही है, वह श्वेतसारिवापदके प्रयोग होनेसें. वोह जैसे सारिवामें निशि, श्यामा, अश्यामा, हरिता, सिता, इसप्रकार कहा है. दोनों सारिवा मधुर चिकनी शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली, भारी है ॥२३८॥ और अग्निमान्य, अरुचि, श्वास, कास, आम, विष इनकों हरती है, तथा त्रिदोष रक्तप्रदर, ज्वरातिसार, इनका नाश करनेवाली है ॥ २३९ ॥
अथ शुगराजनामगुणाः. भृङ्गराजो भृङ्गरजो मार्कवो भृङ्ग एव च। अङ्गारकः केशराजो भृङ्गारः केशरञ्जनः ॥ २४०॥ भृङ्गारः कटुकस्तीक्ष्णो रूक्षोष्णः कफवातनुत् । केश्यस्त्वयः कमिश्वासकासशोथामपाण्डुनुत् ॥ २४१॥ दन्त्यो रसायनो बल्यः कुष्ठनेत्रशिरोतिनुत्।
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