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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पथ रहस्यतन्वस्थो गुरुकौलकपटलो लिख्यते // शिवोवाच / पुरा सनत्कुमाराय दत्तमेतन्मयानघ। संवर्ताय ददौ तच्च स चान्य ददौ च तत् // 2 // सर्वत्र चण्डीस्तोत्रस्य प्राचुर्येण महीतले। ब्रह्मकाण्डः कम्मकाण्डस्तन्त्रकाण्डश्च सर्वथा // 2 // अभूत् प्रतिहतोमेन शीघ्रसिद्धिप्रदायिना। तदा तेषाञ्च सार्थक्य न भूतले // 3 // दानप्रतिग्रहाख्येन मन्त्रोऽयं कीलितो मया। दानप्रतिग्रहाख्यं यत् तत्कीलकमुदाहृतम् // 4 // तदारभ्य च मन्चोऽयं कीलकैनासकीलितः। न सर्वेषां भवेसिध्यै ये कोलकपरान खाः // 5 // ये नराः कीलकेने जपन्ति परयामुदा। तेषां देवी प्रसन्नास्यात्ततः सर्वाः समृडयः॥६॥ त्वत्प्रसूतस्त्वदाज्ञप्तस्त्वद्दासस्तत्परायणः / त्वबामचिन्तनपरस्त्वदर्थेऽहं नियोजितः // 7 // मयार्जितमिदं सर्व तव स्त्र परमेश्वरि ! / राष्ट्र बलं कोशरहं सैन्यमन्यच्च साधनम् // 8 // त्वदधीनं करिष्यामि यत्रार्थे त्वं नियोक्ष्यसि / तत्र देवि ! सदावतें तवाज्ञामेव पालनम // इति संचिन्त्य मनसा स्वार्जितानि धनानि च / कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः // 10 // समर्पयेन्महादेव्यै स्वार्जितं सकलं धनम् / राष्ट्र बल कोशग्टहं नवं यद्यदुपार्जितम् // 11 // अस्मिन्मासि मया देवि तुभ्यमेतत्समर्पितम्। इति ध्यात्वा ततो देव्याः प्रसादात् प्रतिगृह्य च // 12 // विभज्य पञ्चधा सर्ववाशान् स्वार्थ प्रकल्पयेत् / देवपित्रतिथीनाञ्च क्रियार्थवेकमादिशेत् // 13 // एकांशं गुरवे दहात् For Private and Personal Use Only
SR No.020362
Book TitleGuptavati Yukta Durga Saptashati
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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