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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवचधारणस्य फलमाह। पदमे कमित्यादिना अकृतकवच इति शेषः // 38 // 38 // 40 // 41 // 42 // 43 // पुवान् रक्षेन्महालक्ष्मी य्यां रक्षतु भैरवी / मार्ग क्षेमकरौ रक्षेहिजया सर्वतः स्थिता // 36 // रक्षाहीनन्तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु / तत्सर्वं रक्ष मे देवि ! जयन्ती पापनाशिनी // 30 // पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः / कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्र हि गच्छति // 38 // प्र.। 36 // रक्षाहीनमिति / यत् स्थानं रक्षयाहीनं भवति कुत इति चेत् कवचेन तु वर्जितं कवचे तस्य स्थानस्योहो न कृतोऽतः तत्सवं रक्ष मे देवि ! यतस्त्वं जयन्ती सर्वोत्कृष्टा पापनाशिनी भवसि // 37 // अथ पितामहः फल स्तुतिं वक्तुमधिकारिणं प्रथममुपदिशति पदमेकमिति। यदि शुभमात्मनः इच्छेत् तर्हि सपुरुषः कवचेन रहितमेकं पदमपि न गच्छेत् इति, क्षणमात्रमपि देवीस्मरणं विना न क्षपणीयमिति तात्पर्य्यम् / तदुक्तं पुराणेषु / स्वपन् तिष्ठन् व्रजन् मार्गे प्रलपन् भोजने रतः कीर्तयेत् सततं देवीं स वै मुच्यतबन्धनादिति / इत्युपदिश्यफलं कथयति कवचेनेति // 38 // 38 // 40 // 41 // For Private and Personal Use Only
SR No.020362
Book TitleGuptavati Yukta Durga Saptashati
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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