________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्र०क. पार्तभक्तिफलमुक्ताजिज्ञासुभक्त : फलमाई / यस्विति / सिद्धिर्ज्ञानम् आर्त्तानिष्टनिरासानुगुण एव सप्तमातृणां सार्वदिक उद्योग इत्याह / प्रेतसंस्थेत्यादिना // 8 // 8 // 10 // 11 // (1) तेषां सिद्धिरिति पाठान्तरम् / यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषामृद्धिः (1) प्रजायते / प्रेतसंस्थातुचामुण्डा वाराही महिषासना // 8 // ऐन्द्रीगजप्समारूढ़ा वैष्णवी गरुड़ासना। माहेश्वरी वृषारूढ़ा कौमारी शिखिवाहना॥ 6 // ब्राह्मीहंससमारूढ़ा सर्वाभरणभूषिता। नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः // 10 // दृश्यन्ते रथमारूढ़ा देव्यः क्रोधसमाकुलाः। शङ्ख चक्र गदां शक्तिं हलञ्च मुसलायुधम् // 11 // प्र.। यैस्तु भक्त्या स्मृता भवति तेषां पूर्वोक्तं फलम्, ऋद्धिः धर्मार्थकाममोक्षाणां च भवतीत्यत्र किम वक्तव्यमित्याह यैस्तिति। इदानौं देव्या अतिवात्सल्य दर्शयति भक्त्युत्पादनार्थं प्रेतसंस्थेति तत्र सप्तमातृणां वर्णनं लोकदयेन // 8 // नानति। वक्ष्यमाणा देव्यः दृश्यन्त इति, सप्तमाभिवायाच देव्यस्ता अपि भक्तरक्षणार्थ क्रोधसमाकुला रथमारूढ़ा जात्यैकवचनं रथानारूढ़ा दृश्यन्ते अर्थात् देवादिभिरिति // 10 // 11 // For Private and Personal Use Only