________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 8 // 10 // 11 // कौशेति कुशं जलं तस्येदं कमण्डलु कौशं तहताम्भः मेचिके // 12 // 13 // मयूरेति / तस्य कुकुटः पुत्रः पुच्छ वा 'कुक्कुट: ककुभ पुच्छे पुत्रं च चरणायुधे' इति मेदिनीति वहवः / वस्तुतस्तु मयूरः कुक्क टश्चेति हे अपि स्कन्दस्य तृतीयावरणस्थदेवते तदुक्तं शिवार्चनचन्द्रिकायां सुब्रह्मण्य मनुप्रकरणे दलाग्रेषु सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे ! सर्वार्थसाधिके / शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारा० // 6 // सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभृते सनातनि / गुणाश्रये गुणमये नारा० // 10 // शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे / सर्वस्यातिहरे देवि ! नारा० // 11 // हंसयुक्ततविमानस्थे ब्रह्माणीरूपधारिणि। कौशाम्भः क्षरिके देवि ! नारा० // 12 // त्रिशूलचन्द्राहिधरे महावृषभवाहिनि। माहेश्वरीखरूपेण नारा० // 13 // मयूरकुक्कुटवते महाशक्तिधरेऽनधे / कौमारीरूपसंस्थाने नारा० // 14 // च पूर्वादियजदेवाननन्तरं देवसेनापति शक्तिं विघ्न कुक्कटमेव च मेधां मयूरं वज्र च हयं लोकेश्वरांस्तत इति / स्कन्देन हतः शूरपद्मासुर एव मयूरः कुक्क टश्चेति रूपइयं विभ्रत् स्वामिनो वाहनं ध्वजश्चेति क्रमेणाभवदिति स्कान्दे कथा च // 14 // For Private and Personal Use Only