________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // स.टौ. चिच्छेदेति / अस्तान् क्षिप्तान् // 8 // 8 // 10 // 11 चिच्छेदास्तांश्छरांस्ताभ्यां चण्डिका स्वशरोत्करैः। ताड़यामास चाङ्गेषु शस्त्रौघैरमुरेश्वरौ // 8 // निशुम्भो निशितं खड्ग चर्म चादाय सुप्रभम् / अताड़यन् मूवि सिंह देव्या वाहनमुत्तमम् // 6 // ताड़िते वाहने देवी क्षुरप्रेणासिमुत्तमम्। निशुम्भस्याशु चिच्छेद चर्म चाप्यष्टचन्द्रकम् // 10 // छिन्ने चर्मणि खड्ङ्गे च शक्ति चिक्षेप सोऽसुरः / तामप्यस्य विधा चक्रे चक्रेणाभिमुखागताम् // 11 // कोपामातो निशम्भोऽथ शूलं जग्राह दानवः / आयान्तं मुष्टिपातेन देवी तच्चाप्य चूर्णयत् // 12 // आविध्याथ गदां सोऽपि चिक्षप चण्डिकां प्रति / सापि देव्या त्रिशूलेन भिन्ना भस्मत्वमागता // 13 // जग्राह गृहीत्वा विव्याध // 12 // आविध्य धामयित्वा शूलपोत्तरं आदायेति वा तदर्थः // 13 // For Private and Personal Use Only