________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पस्मिन्नवमेऽध्याये तृतीयश्लोकोत्तरमुत्पातान् बहनुक्का ताननादृत्यैव युद्धाय निर्गताविति कथा बहुभिः राजोवाच / विचित्रमिदमाख्यातं भगवन् ! भवता मम / देव्याश्चरितमाहात्मा रक्तवीजबधाश्रितम् // 1 // भूयश्चेच्छाम्यहं श्रोतुं रक्तवीजे निपातिते / चकार शुम्भो यत्कर्म निशुम्भश्चातिकोपन: // 2 // ऋषिरुवाच। चकार कोपमतुलं रक्तवीजे निपातिते / शुम्भासुरो निशुम्भश्च हतेष्वन्येषु चाहवे // 3 // हन्यमानं महासैन्य विलोक्यामर्षमुहहन् / अभ्यधावन्निशुम्भोऽथ मुख्यया सुरसेनया // 4 // तस्याग्रतस्तथा पृष्ठे पार्वयोश्च महासुराः / संदष्टौष्ठपुटाः क्रुद्धा हन्तुं देवीमुपाययुः // 5 // आजगाम महावीर्यः शम्भोऽपि खबलैर्वृतः / निहन्तुं चण्डिका कोपात् कृत्वा युद्धं तु माटभिः // 6 // ततो युद्धमतीवासीह व्याः शुम्भनिशुम्भयोः / शरवर्षमतीवोग्रं मेघयोरिव वर्षतोः // 7 // लोकः कचित्पव्यते // 1 // 2 // 3 // 4 // 5 // 6 // 7 // For Private and Personal Use Only