________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपातयत मूछी प्रापयतेति यावत् // 14 // 15 // 16 // 17 // 18 // 18 // तत: परशुहस्तं तमायान्तं दैत्यपुङ्गवम्। आहत्य देवी बाणोधैरपातयतभूतले॥१४॥ तस्मिन्निपतिते भूभी निशुम्भे भीमविक्रमे। भ्रातर्यतीव संक्रुद्धः प्रययौ हन्तुमम्बिकाम् // 15 // सरथस्थस्तदात्युच्चैर्गृहीतपरमायुधैः। भुजैरष्टाभिरतुलैप्प्याशेषं वभौ नभः // 16 // तमायान्त समालोक्य देवी शङ्खमवादयत् / ज्याशब्दं चापि धनुषश्चकारातीव दुःसहम् // 17 // पूरयामास ककुभो निजघण्टाखनेन च। समस्तदैत्यसैन्यानां तेजोबधविधायिना // 18 // ततः सिंहो महानादैस्त्याजितेभमहामदैः / पूरयामास गगनं गां तथोपदिशो दश // 16 // ततः काली समुत्पत्य गगनं मामताड़यत् / कराभ्यां तन्निनादन प्राक्खनास्ते तिरोहिताः // 20 // ततः कालीति गमनं समुत्पत्यक्ष्मामताड़यदित्यन्वयः / प्राक्वनाः शङ्खज्याघण्टासिंहशब्दाः // 20 // For Private and Personal Use Only