________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टी. // 30 // तस्या भग्रत इति वक्तव्ये पादपूरणायाकारलोपः सोचिलोपे चेदिति ज्ञापकादिति दुर्घटवृत्ति सा च तान् प्रहितान् बाणान् शूलशक्तिपरश्वधान् / चिच्छेद लीलयामातधनुमुक्तैर्महेषुभिः // 30 // तस्याग्रतस्तथा काली शूलपातविदारितान् / खट्टाङ्गपोथितांश्वारीन् कुर्वतो व्यचरनदा // 31 // कमण्डलुजलाक्षेपहतवीयान् हतौजसः / ब्रह्माणी चाकरोच्छन् येन येन म्म धावती // 32 // माहेश्वरी त्रिशूलेन तथा चक्रेण वैष्णवी। दैत्यान् जघान कौमारी तथा शक्त्यातिकोपना // 33 // ऐन्द्री कुलिशपातेन शतशो दैत्यदानवाः / पतुर्विदारिता: पृथ्यां रुधिरौघप्रवर्षिणः॥ 34 // तुण्डप्रहारविध्वस्ता दंष्टाग्रक्षतवक्षसः / वाराहमूान्यपतंश्चक्रेण च विदारिताः // 35 // नखैर्विदारितांश्चान्यान् भक्षयन्ती महासुरान्। नारसिंही चचाराजौ नादापूर्षदिगन्तरा // 36 // कारः / 21 / 32 / 36 // 34 // 25 // 26 // For Private and Personal Use Only