________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 25 // 26 // शिवदूतीति / शिवेन दूतयति सन्देश प्रापयतीत्यर्थ गौरादेराकृतिगणवात् डीए बहुब्रोही तु वैलोक्यमिन्द्रो लभतां देवाः स तु हविर्भुजः / यूयं प्रयात पातालं यदि जीवितुमिच्छथ // 25 // बलाबलेपादध चेद्वन्तो युद्धकाक्षिणः / तदागच्छत टप्यन्तु मच्छिवाः पिशितेन वः // 26 // यतो नियुक्तो दौत्येन तया देव्या शिव: खयम् / शिवदूतीति लोकेस्मिंस्ततः सा ख्यातिमागता // 27 // तेऽपि श्रुत्वा वचो देव्याः शर्वाख्यातं महासुराः / अमर्षापूरिता जग्म र्यत: कात्यायनी स्थिता // 28 // ततः प्रथम मेवाग्रे शरशत्यष्टिष्टिभिः / ववधू महतामर्षास्तां देवीममरारयः // 26 // टाप् स्यादित्याहुः वस्तुतस्तु दुनोतेदतनिभ्यां दीर्घश्चेति निष्ठायां दोघे मत्यल्पसन्देशप्रापकत्वविवक्षायां कादस्पास्थायामिति बहुब्रीहावपि डीप सम्भवतीति समर्थितं ललितानामभाष्येऽस्माभिः // 27 // 28 // 28 // For Private and Personal Use Only