________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बैलोक्ये वररत्नानि मम वश्यान्यशेषतः / तथैव गजरत्नानि हृत्वा देवेन्द्रवाहनम् // 6 // क्षीरोदमथनोद्भूतमश्वरत्नं ममामरैः। उच्चैःश्रवससंजन्तु प्रमिपत्यसमर्पितम् // 61 // यानि चान्यानि देवेषु गन्धर्वेषूरगेषु च / रत्नभूतानि भूतानि तानि मय्येव शोभने ! // 62 // स्त्रीरत्नभूतां त्वां देवि ! लोक मन्यामहे वयम् / सात्वमम्मानुपागच्छ यतो रत्नभुजो वयम् // 63 // मां वा ममानुजं वापि निशुम्भमुमविक्रमम् / भज त्वं चञ्चलापाङ्गि ! रत्नभूतासि वै यत: // 64 // परमैश्वर्यमतुलं प्राप्सासे मत्परिग्रहात्। एतद्दुद्ध्या समालोच्य मत्परिग्रहतां व्रज // 65 // ऋषिरुवाच। इत्युक्ता सा तदा देवी गम्भौरान्तःस्मिता जगी। दुर्गा भगवती भद्रा ययेदधार्यते जगत् // 66 // देव्युवाच / सत्यमुक्तं त्वया नाव मिथ्या किञ्चित्त्वयोदितम् / त्रैलोक्याधिपति: शुम्भी निशुम्भश्चापि तादृशः // 67 // For Private and Personal Use Only