________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति चेति चेति स्वोक्तानुनयनष्ठुर्य वचसोऽभिनीय प्रदर्शनं, लघु क्षिप्रमभ्येतीत्यनेनान्वेति तेनोत्कण्ठाति स.टी. इति चेति च वक्तव्या सा गत्वा वचनान्मम। यथा चाभ्येति संप्रीत्या तथा कार्य त्वया लघु // 55 // स तव गत्वा यवास्ते शैलोद्देशेऽतिशोभने / सा देवी तां तत: प्राह श्लक्षां मधुरया गिरा // 56 // दूत उवाच। देवि ! दैत्येश्वरः शुम्भस्वैलोक्ये परमेश्वरः / दूतोऽहं प्रेषितस्तेन त्वत्सकाशमिहागतः // 57 // अव्याहतानः सर्वासु यः सदा देवयोनिषु / निर्जिताखिलदैत्यारिः स यदाह शृणुष्व तत्॥५८॥ मम बैलोक्यमखिलं मम देवावशानुगाः / यज्ञभागानहं सर्वानुपानामि पृथक् पृथक // 56 // शयध्वनि: // 55 // 56 // देवौति / राजा भट्टारको देवस्तस्य स्त्रीति सिद्धवत्काराभिप्रायेण सम्बोधनम् // 57 // 58 // पृथक् पृथक् एकोपि तत्तद् देवाधिकाररूपोपाधिभेदेन // 5 // For Private and Personal Use Only