________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमानं हंससंयुत्तामेतत्तिष्ठति तेऽङ्गणे / रत्नभूतमिहानीतं यदासौदेधसोडतम्॥४८ निधिरेष महापद्मः समानीतो धनेश्वरात् / किञ्जल्किनौं ददौ चाब्धिर्मालामम्लानपङ्काजाम् // 46 // छव ते वारुणं गेहे काञ्चनस्रावि तिष्ठति। तथायं स्यन्दनवरो यः पुरासीत् प्रजापतेः // 50 // मृत्योरुत्क्रान्तिदा नाम शक्तिरोश ! त्वया हृता / पाशः सलिलराजस्य भ्रातुस्तव परिग्रहे // 51 // निशुम्भस्याब्धिजाताश्च समस्ता रत्नजातयः / वह्निरपि ददौ तुभ्यमग्निशौचे च वाससौ // 52 // एवं दैत्येन्द्र! रत्नानि समस्तान्याहृतानि ते। स्त्रीरत्नमेषा कल्याणी त्वया कस्मान्न गृह्यते // 53 // ऋषिरुवाच। निशम्येति वचः शम्भः स तदा चण्डमुण्डयोः / प्रेषयामास सुग्रीवं दूतं देव्यामहासुरम् // 54 // // 48 // 4 // 50 // 51 // अग्निशोचे इति सदैवाग्निवनिर्मले, अग्निप्रक्षेपापनयमले वा 52 // 53 // 54 // For Private and Personal Use Only