________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टी. 64 परं रूपमिति रूपान्तरं कोशिकी नामकमित्यर्थः, उत्कृष्टं लावण्यं वा, स्थूलं सूक्ष्म पर चेति त्रिविधदेवता ततोऽम्बिकां परं रूपं बिभाणां सुमनोहरम् / ददर्श चण्डीमुण्डश्च भृत्यौ शुम्भ निशुम्भयोः // 42 // ताभ्यां शुम्भाय चाख्याता अतीव सुमनोहरा। काप्यास्त स्त्री महाराज ! भासयन्ती हिमाचलम्॥४३॥ नैव तादृक् क्वचिद्रूपं दृष्टं केनचिटुतमम् / ज्ञायतां काप्यसौ देवी गृह्यतां चासुरेश्वर ! // 44 // स्त्रीरत्नमतिचार्वङ्गी द्योतयन्ती दिशस्त्विषा / सा तु तिष्ठति दैत्येन्द्र ! तां भवान् द्रष्टुमर्हति // 45 // यानि रत्नानि मणयो गजाश्वादीनि वै प्रभो ! / त्रैलोक्ये तु समस्तानि साम्प्रत भान्ति ते गृहे // 46 // ऐरावतः समानौतो गजरत्न पुरन्दरात् / पारिजाततरश्चायं तथैवोच्चैः श्रवाहयः // 47 // रूपश्लेषान्चरमरूपमित्यर्थः / तत्पक्षे सुमनोहरं 'सर्वे देवा यौ कं भवन्तौति श्रुतिसिहसर्वदेवतातादात्मावत् / चण्ड इति तु चण्डीपति परमिति तु रहस्यम् इतरत् प्रकटार्थ परमेव // 42 // 43 // 44 // 45 // 46 // 47 // For Private and Personal Use Only