SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टी. सुखाय पर सयामाकमिति यथा शब्द इति शब्दपर्याय: प्रकारार्थकत्वात्॥५॥६॥ नमो देव्या इत्यथर्वशीर्षस्थो मन्त्रः, स्मेत्यव्ययं प्रार्थनायां वा लोट् // 7 // रौद्रोरसविशेषस्ततीरौद्रा मत्वर्थीयोऽच् धानां पोषकत्वादुपमात्रे सुखायै अभेदेन सुखवत्यै शोभनेन्द्रियाय वा // 8 // प्रणताबद्धय प्रणतानामावृद्धिरूपा प्रणतो सत्या तयास्माकं वरोदत्तो यथापत्सुस्मृताखिलाः। भवतां नाशयिष्यामि तत्क्षणात् परमापदः // 5 // इति कृत्वा मतिं देवा हिमवन्तं नगेश्वरम् / जग्म स्तत्र ततो देवों विष्णुमायां प्रतुष्टुवुः // 6 // देवा ऊचुः / नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः / नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणतास्मताम् // 7 // रौद्रायै नमो नित्यायै गौयँ धावां नमो नमः / ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः // 8 // कल्याण्यै प्रगाताबा सिद्धा कूम्यै नमो नमः / नैऋत्यै भूभृतां लक्ष्मा सर्वाण्यै ते नमो नमः // 6 // मृद्धिरूपति पदयं वा, कूर्मस्य विष्णो: स्त्री कूर्मी कुः पृथिवी तद्रूपा जो वीचो यस्यामिति वा / कुर्म इति पाठे प्रणताः सन्तो वयं नमस्कुर्म रत्वन्वय इति केचित्, भूभृतां गिरीणां राज्ञां वा // 8 // For Private and Personal Use Only
SR No.020362
Book TitleGuptavati Yukta Durga Saptashati
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy