________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 // 12 // 13 // सौम्येमेति / सौम्यशब्दादण् सोमशब्दाच्छान्दसो वा व्यण् / जङ्गोरु इति स.टी. 4. अतीवतेजसः कूटं ज्वलन्तमिव पर्वतम्। ददृशुस्ते सुरास्तत्र ज्वालाव्याप्तदिगन्तरम् // 11 // अतुलं तत्र तत्तेज: सर्वदेवशरीरजम् / एकस्थ तदभूनारी व्याप्तलोकवयं त्विषा // 12 // यदभूच्छाम्भवं तेजस्तैनाजायत तन्मुखम्। याम्येन चाभवन् केशा वाहवो विष्णुतेजसा॥१३॥ सौम्येन स्तनयोर्युग्म मध्यमैन्द्रेण चाभवत्। वारुणेन च जजोरू नितम्बस्तेजसा भुवः // 14 // ब्रह्मणस्तेजसा पादौ तदगुल्योऽर्कतेजसा / वसूनां च करानुल्यः कौवेरेण च नासिका // 15 // तस्यास्तु दन्ताः सम्भूताः प्राजापत्येन तेजसा / नयनवितयं जने तथा पावकलेजसा // 16 // भिवे पदे। नितम्बः कटिपश्चाहागः // 14 // 15 // प्राजापत्वेन दक्षप्रजापतिसंवन्धिना // 16 // For Private and Personal Use Only