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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5 // 6 // एतह इति / बहुवचनं हरिहरी सशक्तिको लक्ष्योकत्य // 1 // 'भुकुटी' भ्रुवोः कौटिल्य तेन कुटिले पानने अयोस्तौ // 8 // मदीया शक्ति लेशा ये तत्तद्देवशरोरगा इति लक्ष्मीतन्त्रादिवचनाहे वेष्वायुधेषु च सूर्येन्द्राग्नानिलेन्दूनां यमस्य वरुणस्य च। अन्येषां चाधिकारान् स स्वयमेवाधितिष्ठति // 5 // स्वर्गान् निराकृताः सर्वे तेन देवगणा भुवि / विचरन्ति यथा मा महिषेण दुरात्मना // 6 // एतहः कथितं सर्वममरारिविचेष्टितम् / शरणञ्च प्रपनास्मो बधस्तस्य विचिन्त्यताम् // 7 // इत्थं निशम्य देवानां वचांसि मधुसूदनः / चकार कोपं शश्च भ्र कुटीकुटिलाननौ // 8 // ततोऽतिकोपपूर्णस्य चक्रिणो बदनात्तत: / निश्चक्राम महत्तेजो ब्रह्मणः शङ्करस्य च // 6 // अन्येषाञ्चैव देवानां शक्रादीनां शरीरतः / निर्गतं सुमहत्तेजस्तच्चैक्यं समगच्छत // 10 // विद्यमानः शक्तिभाग: सर्वोऽप्य कौभूयाष्टादशभुजात्मकं नारीशक्तिरूपण परिणतोऽभूदित्याह ततोऽतिकोपेत्यादिना // 8 // 10 // For Private and Personal Use Only
SR No.020362
Book TitleGuptavati Yukta Durga Saptashati
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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