SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ मन्त्रव्याख्या। विपचित्तेदैत्यस्य पुत्री माहिमतीनाम्नी सिन्धुहोपाख्यमृषि तपस्यन्त महिषीवेषणाभौषयत् ततस्तेन महिष्येव भवेति शप्तासतौ तस्यैवर्षे: शुक्र दैत्यकन्यादर्शनेन स्कन पीत्वा महिषासुराख्य दैत्यं स.टी. (ओं नमश्चण्डिकायै। ओं मध्यमचरित्वस्य विष्णु षिः महालक्ष्मीदेवता उषिणक्छन्दः शाकम्भरीशक्तिः दुर्गाबीजं वायुस्तत्वं महालक्ष्मी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः) / ऋषिरुवाच / देवासुरमभूद्युद्धं पूर्णमब्दशतं पुरा। महिषऽसुराणामधिपे देवानाञ्च पुरन्दरे // 1 // तबासुरैर्महावीयर्देवसैन्यं पराजितम्। जित्वा च सकलान् देवानिन्द्रोभून्महिषासुरः // 2 // ततः पराजिता देवाः पद्मयोनि प्रजापतिम् / पुरस्का त्यगतास्तव यवेश गरुड़ध्वजौ // 3 // यथावृत्त तयोस्तदन्महिषासुरचेष्टितम्। विदशा: कथयामासुर्देवाभिभवविस्तरम् // 4 // प्रासूतति कथा वराहपुराण देवीभागवते च विस्तरेण वर्णिता तत एवावगन्तव्या / 'देवाऽसुरं' तदुभय समाहाररूपम् // 1 // 2 // 3 // 4 // For Private and Personal Use Only
SR No.020362
Book TitleGuptavati Yukta Durga Saptashati
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy