________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.टी. मधुकैटभाविति। प्रवेकाक्षराधिक्य तु वृत्तचन्द्रोदयादावस्माभिर्बहुधा समाहितम् // 72 // बाहुप्रहरणो विभुरित्यस्योत्तरं दो श्लोकौ क्वचित्पठ्येते, न च तो युद्धमुख्य शमं वाप्य पजग्मतुः ततो मधुकैटभौ दुरात्मानावतिवीर्यपराक्रमी। क्रोधरतक्षणावत्तं ब्रह्माणं जनितोद्यमौ // 72 // समुत्थाय ततस्ताभ्यां युयुधे भगवान् हरिः। पञ्चवर्षसहस्राणि बाहुप्रहरणो विभुः // 73 // तावप्यतिबलोन्मत्तौ महामायाविमोहितो। उक्तवन्तौ वरोऽस्मत्तो वियतामिति केशवम् // 74 // श्रीभगवानुवाच / भवेतामद्य मे तुष्टौ मम बध्यावुभावपि / किमन्येन वरेणाव एतावधि वृतं मया // 75 // ऋषिरुवाच / वञ्चिताभ्यामिति तदा सर्वमापोमयं जगत् / विलोक्यताभ्यां गदिती भगवान् कमलेखगाः // 76 // विद्यामुखालोकसमुद्भूतमहोत्सवः // हरिरुचे वरो मत्ती युवाभ्यां नीयतामिति। निशम्यतहिभोर्वाकामवलोक्यपरस्परमिति // 73 // 74 // 75 // आपोमयं जलमयम् पापोऽशनमित्यादौ प्रसिद्धः पाप:शब्दोऽपि जलवाचकोऽस्ति छान्दसमेवेति तु वैय्याकरणाः // 7 // For Private and Personal Use Only