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ज्ञाताधर्मकथासूत्रे
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टीका - काली देवीगमनानन्तरं गौतमः पृच्छति' भंतेति' इत्यादि । भंतेति ' हे भदन्त । इति सम्बोध्य भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवादीत् - काल्या खलु हे भदन्त ! देव्या साच्या साम्प्रतं दर्शिता सा दिव्या ' देबिडी ' देवर्द्धिः = विमानपरिवारादिरूपा, ' देवज्जुई ' देवद्युतिः- शरीराभरणादीनां दीपिरुपा 'देवणुभावे ' देवानुभावः= शक्तिप्रभावादिरूपः, कुत्रगता ? कुत्र प्रविष्टा ? भगवानाह - शरीरं गता, शरीरमनु
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'भंते त्ति भगवं गोयमे ' इत्यादि ।
टीकार्थ :- कालीदेवी के चले जाने के बाद ( भगवं गोयमे ) भग वान गौतम ने ( भंते त्ति) हे भदंत ! इस प्रकार संबोधित कर (समणं भगवं महावीरं वंदड़ णमंसइ) श्रमण भगवान् को वंदना की- नमस्कार किया ( वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी ) वंदना नमस्कार करके फिर उन्हों ने उनसे इस प्रकार पूछा - (कालिएणं भंते । देवीए सा दिव्या देवडी ३ कहिं गया कूडागारसालादिहंगे, अहोणं भंते! कालीदेवी महड़िया ३, कालिएणं भंते! देवीए सा दिव्वा देविडि ३ किण्णा लद्वा, किण्णा पत्ता, कण्णा अभिसमण्णा गया ? एवं जहा सूरिया भस्स जाव ) हे भदंत ! कालीदेवी ने जो इस समय दिव्य विमान - परिवार आदिरूप ऋद्धि दिखलाई, शरीर, आभरण आदि की दीप्तिरूप जो देवद्युति एवं शक्ति प्रभाव आदिरूप जो देवानुभाव दिखलाया वह सब कहां चला
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'संतेति भगवं गोयमे' इत्यादि
टीडार्थ - अजी हेवीना ४ता रह्या माह ( भगवं गोयमे ) भगवान गौतभे ( भंतेत्ति ) हे लहन्त ! आमा सोधन उरीने ( समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ ) श्रमण भगवान महावीरने वहन अने नमस्कार अर्या. ( वंदित्ता सिता एवं वयासी ) वहना भने नभस्४२ उरीने ते तेथे श्रीने पूछयुं
(कालिएणं भंते! देवीए सा दिव्या देवडी ३ कहिं गया० कूडागार - सालादिहंतो, अहोणं भंते ! काली देवी महड़िया ३, कालिएणं भंते! देवीए सा दिव्या देवडि ३ किण्णा लढा, किया पत्ता, किष्णा अभिसमण्णा गया ? एवं जहा सूरियाभस्स जान )
હે ભદન્ત ! કાળી દેવીએ ऋद्धि सतावी, शरीर, आभरण પ્રભાવ વગેના જે દેવાનુભાવ કયાં પ્રવિષ્ટ થઇ ગયા ?
અત્યારે જે દિવ્યવિમાન, પરિવાર વગેરેની वगेरेनी हीप्सिनी ने देवधुति. तेमन शक्ति, ખતાબ્યા તે બધો કયાં અદૃશ્ય થઈ ગયા ?
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