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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ममगारधर्मामृतवर्षिणी टीका श्रु० २ ०१ ० १ कालीदेवीवर्णनम् ७७५ कालियंदारियं सीयाओ पञ्चोरुहइ तएणं तं कालियंदारियं अम्मा. पियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसा० तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिया ! काली दारिया अम्हं धूया इट्टा कंता जाव किमंग पुण पासणयाए ?, एसणं देवाणुप्पिया! संसार. भउठिवगा इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता जाव पवइत्तए, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणिभिक्खं, दलयामो पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह तएणं काली कुमारी पासं अरहं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसिभागं अवकमइ अवकमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं आमुयइ ओमुइत्ता सयमेव लोयं करेइ करित्ता जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पासं अरहं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-आलित्ते णं भंते ! लोए एवं जाव सयमेव पवाविया, तएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए दलयइ,. तएणं सा पुप्फचूला अज्जा कालिं दारियं सयमेव पवावेइ, जाव उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, तएणं सा काली अज्जा जाया ईरियासभिया जाव गुत्तबंभयारिणी, तएणं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाइं एकारस अंगाई अहिजइ बहूहि चउत्थ जाव विहरइ॥सू०३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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