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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ धर्मक कमित्ता एसणमणेसणं आलोएंति आलोइत्ता भत्तपाणं पडिदति पडिदसित्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुपिया ! जाव कालगए तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! इमं पुवगहियं भत्तपाणं परिद्ववेत्ता से त्तुंजं पव्त्रयं सणियं सनियं दुरूहित्तए 'संलेहणा सणा झुसियाणं' कालं अणवकंखमाणाणं विहरितपत्तिक अण्णमण्णस्स एयमहं पडिसुर्णेति पडिसुणित्ता तं पुव्वगाहियं भत्तपाणं एते परिटुवेंति परिवित्ता जेणेव सेतुंजे पव्वए तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता सेत्तुजं पव्वयं दुरुहंति दुरूहित्ता जाव कालं अणवकखमाणा विहरति । तपणं ते जुहिडिल्लपामोक्खा पंच अणगारा सामाइयमाइयाई चोइसपु०वाई० बहूणि वासाणि० दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता जस्साए कीरइणग्गभावे जाव तमट्ठमारार्हेति तमट्ठमाराहित्ता अनंते जाव केवलवरणाणदंसणे समुपपन्ने जाव सिद्धा ॥ सू० ३३ ॥ टीका-' तरणं थेरा' इत्यादि । ततस्तदनन्तरं खलु स्थविरा भगवन्तोऽ न्यदाकदाचित् पाण्डुमथुरातो नगरीतो सहस्राम्रवणादुद्यानात् प्रतिनिष्क्रामन्ति = निर्गच्छन्ति, प्रतिनिष्क्रम्य निर्गस्य, बहिर्जन पद विहारं विहरन्ति । -: एणं थेरा भगवंता इत्यादि । टीकार्थ - (ए) इसके बाद (थेरा भगवंतो) उन स्थविर भगवंतोने ( अन्नया काई ) किसी एक समय ( पंडुमहुराओ ) पांडु मथुरा (णयओ) नगरी से ( सहसंबवणाओ) सहस्राम्रवन नाम के ( उज्जा तएण थेरा भगवंता इत्यादि टी अर्थ - (तरण) त्यारमाह (धेरा भगवतो) ते स्थविर लगवतोसे (अनया काई ) ते ( पंडु महुराओ ) पांडु भथुरा ( जयरीओ ) नगरीथी ( सहस्रं बबणाओ ) सहसाभ्रवन नामना (उज्जाणाओ ) उद्यानमा ( पडि For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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