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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir arraigent डी० अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् वासुदेवस्स दोवई, एसणं अहं सयमेव जुज्झसज्जो णिग्गच्छामि तिकडु दारुयं सारहिं एवं वयासी - केवलं भो ! रायसत्थेसु दूये अवझे तिकट्टु असकारिय असम्माणिय अवद्दारेणं निच्छुभावइ, तरणं से दारुए सारही पउमणाभेणं असकारिय जाव णिच्छूढे समाणे जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल० कण्हं जाव एवं वयासी -- एवं खलु अहं सामी ! तुब्भं वयणेणं जाव णिच्छुभावेइ ॥ सू० २८ ॥ टीका- 'तपणं से' इत्यादि । ततः खलु स कृष्णो वासुदेवः कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत् गच्छत खलु यूयं हे देवानुप्रिय ! द्वारant नगरीम्, 'एवं यथा पाण्डुस्तथा घोषणां घोषयत ' - यथा पाण्डू राजा हस्तिनापुरे घोषणां कारितवान् तद्वदित्यर्थः । तेऽपि कौटुम्बिक पुरुषास्तथैव घोषणां For Private and Personal Use Only ४९५ - एर्ण से कहे वासुदेवे इत्यादि । टीकार्थ - (एणं) इसके बाद ( से कण्हे वासुदेवे) उन कृष्ण वासुदेव ने (कोबियपुर से सहावे ) कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया (सद्दावित्ता) बुलाकर ( एवं वयासी) उन से ऐसा कहा (गच्छह णं तुग्भे देवाणुप्पिया बारवt) हे देवानुप्रियों । तुम द्वारावती नगर में जाओ ( एवं जहा पंडु तहा घोसणं घोसावेंति जाव पच्चष्पिणंति पंडुस्स जहा ) वहां पांडु राजाकी तरह घोषणा करो-अर्थात् पांडु राजाने जिस प्रकार द्रौपदी की खबर लानेवाले के लिये अर्थ प्रदान का घोषणा अपने कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा हस्तिनापुर नगर में करवाई थी - इसी प्रकार की घोषणा करने के ' तप से कण्हे वासुदेवे ' इत्यादि. , टीअर्थ - (तएणं) त्यारपछी ( से कण्हे वासुदेवे ) ते दृष्य वासुदेवे (कोडु बिय ghà agiàs) âg'ías yaala Mo (agıfaar) Aadla ( gai बयासी ) तेभने या प्रभा उ है - ( गच्छह णं तुब्भे देवाणुपिया बारबई ) हे देवानुप्रियो ! तभे द्वारवती नगरीमां लो ( एवं जहा पंडु तहा घोसण घोसावेत जाव पञ्चविणंति पंडुस्स्र जहा ) त्यां पांडु रान्ननी प्रेम घोषणा કરો એટલે કે પાંડુ રાજાએ જેમ દ્રૌપદીની શેાધ કરવા માટેની દ્રવ્ય આપનાની ઘેાષણા હસ્તિનાપુર નગરમાં કરાવી હતી તે પ્રમાણે જ ઘાણા કરવા
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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