________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भनगारधर्मामृतवर्षिणी रोका म० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् ४४९ तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करिता वंदइ णमंसइ महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेइ,तएणं से कच्छल्लनारए उदगपरिफासियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए णिसीयइ, णिसीयित्ता पंडुरायं रज्जे जाव अंतेउरेय कुसलोदंतं पुच्छइ,तएणं से पंडूराया कोंतीदेवी पंच य पंडवा कच्छल्लणारयं आढ़ति जाव पज्जुवासंति, तएणं सा दोवई कच्छल्लनारयं असंजय अविरय अपडिहयपचक्खायपावकम्मे तिकटु नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुहेइ नो पज्जुवासइ ॥ सू० २४ ॥ ___टीका-'तएणं ते' इत्यादि । ततस्तस्तदनन्तरं खलु ते पञ्चपाण्डया द्रौपद्या देव्या सार्थ ' कल्लाकलिं ' कल्याकल्ये प्रतिदिवसं वारंवारेण उदारान् भोगभोगान् यावद् भुनाना विहरन्ति । ततः खलु स पण्डू राजाऽन्यदा कदाचित् पञ्चभिः पाण्डवैः कुन्त्या देव्या द्रौपद्या देव्या च सार्धं 'अंतो अंतेउरपरियाल'
'तएणं ते पंच पंडवा' इत्यादि । टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (ते पंच पंडवा) वे पांचों पांडव (दोवईए देवीए) द्रौपदी देवी के साथ-(कल्लाकल्लिं वारंवारेणं ओरालाई भोग भोगाई जाव विहरंति-तए णं से पंडूराया अन्नया कयाई पंचहि पंडवेहिं कोतीए देवीए दोवईए देवीए य सद्धिं अंतेउरपरियालसद्धिं संपरियुडे सीहासणवरगए यावि विहरइ ) प्रतिदिन बारी बारी से उदारकाम भोगों को भोगने लगे एक दिन की बात है-कि पांडु राजा किसी एक समय पांचों पांडवों एवं अपनी पत्नी कुन्ती देवी और पुत्रवधू द्रौपदी
Astथ-" तरण ते पंच पंडवा इत्यादि
टी-(तएण) त्या२५०ी (ते पंच पंडवा) ते पांय पांव। (दोवईए देवोए ) द्रौपदी वीनी साथै
(कल्लाकल्लि वारंवारेण ओरालाई भोगभोगाई जाव विहरंति-तएणं से पंडराया अन्नया कयाई पंचहिं पंडवेहि कोतीए देवीए दोवइए देवीए य सद्धिं अंतेउरपरियालसद्धि संपरिखुडे सीहासणवरगए यावि विहरइ )
દરરોજે વારાફરતી ઉદાર કાભોગ ભોગવવા લાગ્યા. એક દિવસની વાત
२ण ओराला कांतीय बावि विहर - a
For Private and Personal Use Only