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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ટ शाताधर्मकथासूत्रे दोवइए देवीए यसद्धिं अंतो अंतेउरपरियालसद्धि संपरिवुडे सीहासणवरगए यावि विहरह, इमं च णं कच्छुल्लणारए दंसणेणं अइभद्दए विणीए अंतोर य कलुसहियए मज्झन्थोवत्थिए य अणिसोम पियदंसणे सुरूवे अमइलसगलपरिहिए कालमियचम्म उत्तरासंगर इयवच्छे दण्डकमण्डलुहत्थे जडामउडदितसिरए जन्नोवइयगणेत्तियमुंज मेहलवागलघरे हत्थकय कच्छभए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणिओवयणिउप्पयणि लेसणीसु य संकामणिअभिओगपण्णत्ति गमणीथंभणीसु य विज्जाहरी विजासु विस्सुयजसे इट्टे रामस्त य केसवरस य पज्जुनपईवसंबअनिरुद्धणिसढ- उम्मुयसारणगय सुमुह. दुम्मुयहातीण जायवाणं अद्भुट्ठाण कुमारकोडीणं हिययदइए संथवए कलहजुद्धकोलाहलप्पिए भंडणाभिलासी बहुसु य समरसयसंपराएस दंसणरए समंतओ कलहंसदक्खणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवरवीरपुरिस तिलोक्कबलवगाणं आमं तेऊण तं भगवई पक्कमर्णि गगणगमणदच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयतो गामागर नगर निगमखेड कब्बड मडंब दोणमुहपट्टणासमसंवाहमुहस्समंडियं थिमियमेइणीतलं वसुहं ओलोईतो रम्मं हस्थिणाउरं उबागए पंडुरायभवणंति अइवेगेण समोवइए, तपणं से पंडुराया कच्छुल्लनारयं एजमाणं पासइ पासित्ता पंचहिं पंडवेहि कुंतीए य देवीए सद्धिं आसणाओ अब्भुट्ठेइ अन्भुट्टित्ता कच्छुल्लनारयं सतटुपयाई परचुग्गच्छ पच्चुग्गचिन्ता तिक्लु. For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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