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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १३ नन्दमणि कारभवनिरूपणम ७८३ हस्तिस्कन्धवरगतः गजोपरिसमारूढः, सकोरण्टमाल्यदाम्ना-कोरण्टकुसुममालया, छोण घ्रियमाणेन स्वभृत्यहस्तधृतेन, श्वेतवरचामरैरुद्धृयमानैः स्वभृत्यैर्वीजितः, हयगजरथमहाभटचटकरकलितया अश्वगजस्थमहाभटानां चटकरः समूहस्तेन कलितया-युक्तया, चतुरङ्गिण्या सेनया साध संपरिवृतो मम पादवन्दको हव्यं-शीधम् , आगच्छति, ततः खलु स दर्दुरः श्रेणिकस्य राज्ञ एकेन 'आसकिसोरएणं' अश्वकिशोरकेन वामपादेन ' अकं ते समाणे ' आक्रान्तः अभिभूतः देहोपरिपादनिपाताऽऽघातं प्राप्तः सन् 'अंतनिग्याइए' अन्त्रनिर्घातितः अन्त्रस्य ' आँत' करने के लिये तैयार हुआ स्नान से निबट कर और कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित विधि समाप्त कर गज पर चढे हुए जल्दी २ आ रहे थे। उस समय वे समस्त अलंकारों से विभूषित थे। उन के ऊपर कोस्ट पुष्पों की माला से शोभित छत्र छत्रधारी ने लगा रखा था। यमर टोरने वाले भृत्य जन उन पर शुभ्र उत्तम चमर ढोल रहे थे, हय, गज, रथ, एवं महा भटों के समूह से युक्त चतुरंगिणी सेना से वे घिरे हुए थे। (तएणं से दद्दुरे सेणियस्स रणो एगेणं आस किसोरएणं वाम पाएणं अक्कंते समाणे अंत निग्गाइएकए यावि होत्था तएणं से दरे अत्थामे अबले अकीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधोरणिज्ज मित्ति कड एगंतमवक्कमह, अवक्कमित्ता करयलपरिग्गहियं मत्थए अंजलि कटु एवं वयोसि ) फुदक २ अपनी चाल से चलता-हुआ वह मेहक श्रेणिक राजा के किसी एक घोड़े के बच्चे के वाम पैर से आक्रान्त हो मला-अर्थात् उस का वाम चरण उस के ऊपर पड़ गया । सो उसी શ્રેણિક રાજા મને વંદન કરવા માટે તૈયાર થયા. તેઓ સ્નાનથી પરિવારને કૌતક, મંગળ અને પ્રાયશ્ચિત્ત વિધિ પૂરી કરી અને હાથી ઉપર સવાર થઈને ઝડપથી આવી રહ્યા હતા. તે વખતે તેઓ બધી જાતના અલંકારોથી વિભૂષિત હતા. તેમના ઉપર કરંટ પુની માળાથી શોભતું છત્ર છત્રધારીઓએ તાણેલું હતું. ચમર ઢાળનાર નેકરે તેમના ઉપર શુભ્ર ઉત્તમ ચમરે ઢળી રહ્યા હતા. હય (ઘડા) ગજ, રથ અને મહાભાના સહથી યુક્ત ચતુરંગિણી એનાથી तेसा वीटायेता ता (तएण से दद्दुरे सेणियस्स रण्णो एगेण आसकिसो. रएणं वामपाएग अकते समाणे अंत निग्धाइएकए याविहोत्था तरुणं से दद्दुरे अत्यामे अबले अकीरिए अपुरिमकारपरक्कमे आधारणिजमित्ति कट्ट एगंतमवकमइ, अवकमित्ता कारणलपरिग्गहियं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयोनी) કૂદકા મારતે તે દેડકે શ્રેણિક રાજાના કોઈ એક ઘેડાના ટૂના ડાબા પગથી આક્રાંત થઈ ગયે એટલે કે તેને ડાબે પગ તેના ઉપર પડી છે. તેથી For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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