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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रोताधर्मकथासूत्रे चपलया - शरीरचापल्येन युक्तया, चण्डया - तीव्रया, अतएव शीघ्रया, उद्धुतयाअशेष शरीरावयवकम्पवा, जयिन्या अन्यददु रगतिजेच्या, छेकया- अपायपरिहारे निपुणया, दर्दुरंगत्या - मण्डूकगत्या 'वीश्वयमाणे ' व्यतिव्रजन् २-महावेगेन गच्छन् २, यचैव ममान्तिकं तत्रैव प्राधारयद् गमनाय = गन्तुं प्रवृत्तः । अस्मिन्नेव समये उद्यानरक्षकमुखान्ममागमनं श्रुत्वा श्रेणिको राजा भंसारः = सारापरनामकः स्नातः कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चितः सर्वालंकारविभूषितः, जो उत्कर्ष होता है वह उस उत्कर्ष से युक्त थी । उस मेंढक के मन में बड़ी भारी उत्सुकता थी - सो उस उत्सुकता से वह गति भरी हुई थी - इस कारण वह उस की गति त्वरित थी। शरीर की चपलता से युक्त होने के कारण, तीव्र होने के कारण, शीघ्रता से युक्त होने के कारण, समस्त शारीरिक अवयवों के कंपन से युक्त होने के कारण अन्य साधारण दर्दुरों की गति की अपेक्षा विशिष्ट होने के कारण, और अपायों को बचा २ कर चलने के कारण वह गति क्रमशः चपल चण्ड, शोघ्र उद्धत, जयनी, और छेक इन विशेषणों वाली थी । इमं चणं सेणिए राया भंभसारे पहाए कयकोउयमंगलपायच्छिते सव्वालंकार विभूसिए, हत्थि खंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्ज माणेण सेयवरचामराहिं उद्ध्रुवमाणाहिं हयगयरहमया भडचडगरकलियाएं चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपडियुडे मम पायबंदए मागच्छ ) इसी समय उद्यान रक्षक के मुख से मेरा आगमन सुनकर भंभसार " इस अपर नाम वाले श्रेणिक राजा मेरी वंदना (" For Private And Personal Use Only હતી. તે દેડકાના મનમાં ભારે ઉત્સુકતા હતી તેની ગતિમાં ઉત્સુકતાને લીધેજ દ્વરા આવી ગઈ હતી. શરીરની ચપળતાથી યુક્ત હવા બદલ, તીત્ર હાવા બદલ, શીઘ્રતા યુક્ત હાવા બદલ, શરીરના બધા અવયવેાના કપનથી યુક્ત હાવ બદલ, બીજા સાધારણ દેડકાએ ગતિ કરતાં વિશિષ્ટતા युक्त હાવા બદલ અને અપાયા ( આફ્તે ) થી સાવધ થઈને ચાલવા બદલ તે ગતિ ક્રમશઃ संपण, थंड, शीघ्र, धुत, नयनी मने छेउ मा विशेषशेोवाणी हुती. ( इम चण सेणिएराया भभसारे व्हाए कयकौउयमंगलपायच्छते सव्वालंकारविभूसिए, इत्थिखंधबरगए सकोरंटमलदा मेणं छत्तेण धरिज्जमाणेण सेयवर चामराहि उदूधुत्र्वमाणाहिं हयगयरहमहया भङ्गचडगरका लियाए चाउर गिणीए सेनाए सद्धि संपडिवुडे मम पायवंदए हव्वमागच्छा) ते वषते उद्यान रक्षा મુખથી મારા આગમનની વાત સાંભળીને ‘ ભભસાર ' એ બીજા નામવાળા
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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