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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंगारघमृतवर्षिणी टीकाप्र०११ जीवानामाराधविराधकत्वनिरूपणम् ६६९ पुष्फिया फलिया हरियगरेरिज्जमाणा सिरीए अतीव २ उवसोभेमाणा चिट्ठति, जयाणं दीविच्चगा ईसि पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति तयाणं वहवे दावदवा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति अप्पेगइया दावदवा रुक्खा जुन्ना झोडा परिसडियपंडुपत्त पुप्फफला सुक्करुक्खओ विव मिलायमाणा २ चिति, एवामेव समणोउसो ! जो अहं निग्गंथो वा निग्गंधी वा जाव पत्रइये समाणे वहूणं समणाणं ४ सम्मं सहति जाव अहिया से बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ नो खमइ नो तितिक्खइ नो अहियासेइ एस णं मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते । समणाउसो ! जया णं सामुद्दगाईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाता वायंति तदा णं बहवे दावदवा रुक्खा जुण्णा झोडा जाव मिलायमाणा२ चिद्वंति, अप्पेगइया दावदवा रुक्खा पत्तिया पुष्फिया जाव उवसोभे. माणार चिति, एवामेव समणाउसो ! जो अम्हे निग्गंथो वा निग्गंधी वा पव्वइए समाणे बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्मं सहइ बहूणं समणाणं ४ नो सम्मं सहइ एस मए पुरिसे देसाराहए पन्नते । समणाउसो ! जयाणं नो दीविच्चगाणो सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव महावाया वायंति तयाणं सव्वे दावदवा रुक्खा जुण्णा झोडा जाव मिलायमाणा चिट्ठति, अप्पेगइया जाव उवसोभेमाणा२ चिट्ठति, एवामेव समणाउसो ! जाव पव्त्रइए समाणे बहूणं समणाणं ४ बहूणं अन्न उत्थियगिहत्थाणं नो सम्मं सहइ एसर्ण मए For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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